For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रवि भसीन 'शाहिद''s Blog – March 2020 Archive (5)

जी हाँ (ग़ज़ल)

हज़ज मुसम्मन महज़ूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222 / 1222 / 1222 / 122

अभी भी है तुम्हें उस बेवफ़ा से प्यार? जी हाँ

निभाने को ये ग़म ता-उम्र हो तय्यार? जी हाँ [1]

उसे देखे बिना इक पल नहीं था चैन दिल को

उसे फिर देखना चाहोगे तुम इक बार? जी हाँ [2]

सिवा ज़िल्लत मिला कुछ भी नहीं कूचे से उसके

अभी भी क्या तुम्हें जाना है कू-ए-यार? जी हाँ [3]

पता तो है तुम्हें सर माँगती है ये मुहब्बत

तो क्या जाओगे हँसते हँसते…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 26, 2020 at 3:38pm — 5 Comments

ख़ुदा ख़ैर करे (ग़ज़ल)

रमल मुसम्मन सालिम मख़्बून महज़ूफ़ / महज़ूफ़ मुसक्किन

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़इलुन/फ़ेलुन

2122 1122 1122 112 / 22

ये सफ़र है बड़ा दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे

राह लगने लगी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे [1]

इस किनारे तो सराबों के सिवा कुछ भी नहीं

देखिए क्या मिले उस पार ख़ुदा ख़ैर करे [2]

लोग खाते थे क़सम जिसकी वही ईमाँ अब

बिक रहा है सर-ए-बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे [3]

ये बग़ावत पे उतर आएँगे जो उठ बैठे

सो रहें हाशिया-बरदार ख़ुदा ख़ैर करे…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 20, 2020 at 7:00pm — 16 Comments

जो तेरी आरज़ू (ग़ज़ल)

बहरे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़

1 2 2 2 / 1 2 2 2 / 1 2 2

जो तेरी आरज़ू खोने लगा हूँ

जुदा ख़ुद से ही मैं होने लगा हूँ [1]

जो दबती जा रही हैं ख़्वाहिशें अब

सवेरे देर तक सोने लगा हूँ [2]

बड़ी ही अहम हो पिक फ़ेसबुक पर

मैं यूँ तय्यार अब होने लगा हूँ [3]

जो आती थी हँसी रोने पे मुझको

मैं हँसते हँसते अब रोने लगा हूँ [4]

बढ़ाता जा रहा हूँ उनसे क़ुरबत

मैं ग़म के बीज अब बोने लगा हूँ [5]

जो पुरखों की दिफ़ा…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 15, 2020 at 1:00am — 11 Comments

करेगा तू क्या मिरी वकालत (ग़ज़ल)

बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़बूज़ अस्लम

121   22   121   22

फ़रेब-ओ-धोका है ये अदालत

करेगा तू क्या मिरी वकालत [1]

रसूल कितने ही आ चुके पर

गई न इंसान की जहालत [2]

सनम रिझाएँ ख़ुदा मनाएँ

है गू-मगू की ये अपनी हालत [3]

जो मुड़ गया राह-ए-इश्क़ से तो

रहेगी ता-उम्र फिर ख़जालत [4]

किसे फ़राग़त जो दे तवज्जो

दिखाइएगा किसे बसालत [5]

है मुख़्तसर मेरी गुफ़्तगू पर

है ग़ौर और फ़िक्र में तवालत…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 10, 2020 at 5:30pm — 5 Comments

होली के इन रंगों में (ग़ज़ल)

बह्र मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ 16-रुक्नी

(बह्र-ए-मीर)

2 2   2 2   2 2   2 2   2 2   2 2   2 2   2

छुपे हैं जाने कितने क़िस्से होली के इन रंगों में

प्यार मुहब्बत यारी रिश्ते होली के इन रंगों में

बच्चों की अठखेली इनमें और दुआएँ पुरखों की

जवाँ दिलों के ख़्वाब मचलते होली के इन रंगों में

नीला सब्ज़ गुलाबी पीला लाल फ़िरोज़ी नारंगी

जीवन के सब रंग झलकते होली के इन रंगों में

सदा मनाते आए होली मिल कर सब हिंदुस्तानी…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 10, 2020 at 12:00am — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
7 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service