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रवि भसीन 'शाहिद''s Blog – February 2020 Archive (6)

कोई हो ही नहीं सकता (ग़ज़ल)

बह्र हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222

सियासत में शरीफ़ इन्साँ कोई हो ही नहीं सकता

सियासतदान सा शैताँ कोई हो ही नहीं सकता

जो नफ़रत की दुकानों में है शफ़क़त ढूँढता फिरता

उस इन्साँ से बड़ा नादाँ कोई हो ही नहीं सकता

निकाला जा रहा है जो जनाज़ा ये सदाक़त का

तबाही का सिवा सामाँ कोई हो ही नहीं सकता

बिरादर को बिरादर से रफ़ाक़त अब नहीं बाक़ी

ये नुक़साँ से बड़ा नुक़साँ कोई हो ही नहीं…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 29, 2020 at 10:30pm — 6 Comments

माइल नहीं हुआ (ग़ज़ल)

मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

2 2 1 / 2 1 2 1 / 1 2 2 1 / 2 1 2

ये दिल इबादतों पे तो माइल नहीं हुआ

मुनकिर न था मगर कभी क़ाइल नहीं हुआ

इसको बचा बचा के यूँ कब तक रखेंगे आप

वो दिल ही क्या जो इश्क़ में घाइल नहीं हुआ

ग़ैरत थी कुछ अना थी किया ज़ब्त उम्र भर

मैं तिश्नगी में जाम का साइल नहीं हुआ

दर्जा अदब का ऊँचा है मज़हब से जान लो

शाइर कभी भी वज्ह-ए-मसाइल नहीं हुआ

क्या क्या…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 27, 2020 at 11:12pm — 6 Comments

जानता हूँ मैं (ग़ज़ल)

221 2121 1221 212

मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

.

तेरे फ़रेब-ओ-मक्र सभी जानता हूँ मैं

'शाहिद' हूँ ज़िन्दगी तुझे पहचानता हूँ मैं

काफ़िर न जानिए है ये कुछ अस्र-ए-बद-दुआ

शह्र-ए-बुतां की धूल जो अब छानता हूँ मैं

जी भर के ज़िन्दगी न जिया ख़ुद से है गिला

जीने की रोज़ सुब्ह यूँ तो ठानता हूँ मैं

इक़बाल-ए-जुर्म मेरा मुसव्विर भी तो करे

ख़ुद की तो ख़ामियाँ सभी गर्दानता हूँ…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 25, 2020 at 1:00am — 5 Comments

तू ही नहीं मैं भी तो हूँ (ग़ज़ल)

रमल मुसम्मन महज़ूफ़

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2 2 / 2 1 2

सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

दौड़ता जाता है ख़ामोशी से बिन पूछे सुने

वक़्त से दहशत-ज़दा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

ज़िन्दगी है लम्हा लम्हा जंग अपने-आप से

अपने अंदर कर्बला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ

दिल के अंदर गूंजती हैं चीख़ती ख़ामोशियाँ

एक साज़-ए-बे-सदा तू ही नहीं मैं भी…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 20, 2020 at 12:44am — 7 Comments

ये कैसी बहार है (ग़ज़ल)

मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

2 2 1 / 2 1 2 1 / 1 2 2 1 / 2 1 2

फूलों के सीने चाक हैं बुलबुल फ़रार है

सब दाग़ जल उठे हैं ये कैसी बहार है

कैसी बहार शहर में क्या मौसम-ए-ख़िज़ाँ

कारें इमारतें हैं दिलों में ग़ुबार है

कुछ बस नहीं बशर का क़ज़ा पर हयात पर

लेकिन ग़ुरूर ये है कि ख़ुद-इख़्तियार है

हाकिम है ख़ूब ख़्वाब-फ़रोशों पे मेहरबां

भाता नहीं उसे जो हक़ीक़त-निगार है

क्या ख़ूब है…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 16, 2020 at 7:41pm — 4 Comments

वैलेनटाइन डे

कितना क़ायदा, कितना सलीका

ले आये हैं हम दुनिया में

दिन हैं मुक़र्रर सब कामों के

माँ और बाप को

उस्तादों को, और वतन को

यादों में लाने के लिए और

कितनी इज़्ज़त कितनी अक़ीदत

उनके लिए है दिल में हमारे

सबको बतलाने के लिए

और इक दिन है इश्क़ के नाम भी

वैलेनटाइन डे कहते हैं जिसको

जब भी आता है ये दिन तो

एक अजब एहसास सा दिल में भर जाता है

सोचता हूँ कि एक ही दिन क्यों रक्खा गया है

इश्क़, मुहब्बत, प्यार के नाम

प्यार भी…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 14, 2020 at 5:20pm — 3 Comments

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