For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Raz Nawadwi: In the Labyrinth of My Mystical Alleys-7 (मेरी रहस्यवादी वीथी के व्यामोह में-७) 'मूर्तिपूजा क्या है?'

मूर्तिपूजा क्या है?

-------------------

 

संतों ने स्पष्ट कहा है कि "सिर्फ मूर्तिओं की उपासना ही मूर्तिपूजा नहीं है. यदि कोई व्यक्ति अपनी आदतों का गुलाम है तो वो भी मूर्तिपूजक ही है". उन्होंने यहाँ तक कहा है कि "उन चीज़ों के अस्तित्व में विश्वास जो वस्तुतः अस्तित्व में नहीं है, भी मूर्तिपूजा है. यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार, बच्चों, इत्यादि से (आसक्त होकर) प्यार करता है तो वह भी मूर्तिपूजा ही है. सारांशतः, किसी भी भौतिक वस्तु में आसक्ति मूर्तिपूजा है".

 

इसका दूसरा पहलू ये भी है कि यदि किसी मूर्ति अथवा प्रतीक की भी पूजा यदि सार्वभौम, ब्रह्मस्वरुप अकायिक अमूर्त ईश्वर को ध्यान में रख के की जाए तो वो मूर्तिपूजा नहीं है. यदि आप अपने पिता की अनुपस्थिति में उनकी तस्वीर को देखकर उन्हें याद कर रहें हैं तो वस्तुतः आप अपने पिता को याद कर रहे है न कि उनकी तस्वीर की उपासना. इसके विपरीत यदि पिता प्रत्यक्ष हों और हम उनकी अवहेलना कर सिर्फ उनकी तस्वीर को अपनी श्रद्धा का विषय बनाएं तो वह एक अत्यंत मूढ़ किस्म की मूर्तिपूजा होगी. हमारा जीवन ऐसे उदाहरणों से भरा है जहां वृद्ध माता-पिता जब जीवित होते हैं तो उनकी कोई कद्र नहीं होती और जब स्वर्ग सिधार जाते हैं तब हम रो-रो कर सारी दुनिया को ये बताते हैं कि देखो हमें उनसे कितना प्यार था. हम सुन्दर फ्रेमों में उनकी उनकी तस्वीरों को मढ़वाते हैं और बड़ी बड़ी मालाओं से उन्हें अभिनंदित करते हैं.  

 

मूर्तिपूजा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य यह है कि इसकी शुरुआत वैसे लोगों की आध्यात्मिक मदद के लिए की गई जिनके लिए किसी कारणवश ईश्वर के अमूर्त रूप पर प्रत्यक्षतः ध्यान करना संभव नहीं था. जैसे कुछ लता-गुल्मों को प्रारम्भ में बढ़ने के लिए सहारों की ज़रूरत होती है वैसे ही अमूर्त पर सीधे ध्यान न कर पाने वालों को मूर्तियों का सहारा दिया गया जिन्हें समय समय पर कोई सक्षम एवं समर्थ संत या फ़कीर आध्यात्मिक सत्व से चार्ज कर देते थे जैसे आज के ज़माने में हम सेल को चार्ज कर देते हैं. कालांतर में सब कुछ विद्रूप हो गया और अमूर्त एवं सार्वभौम ईश्वर तो गौण हो गया, प्रतीक एवं संकेत मुख्य हो गए.

 

पूजा, अर्चना, एवं इबादत के सारे स्थल और उनसे जुड़ी सारी कवायद तब तक सिर्फ प्रतीक ही हैं जब तक हमारी नज़र सम्पूर्ण सृष्टि के मालिक पे नहीं है. हमारे प्रियतम की पहनी चूड़ियाँ भले ही टूटी क्यूँ न हों, यदि उनसे हमें हमारे प्रियतम की याद आती है , तो वे हमारे लिए प्रियतम स्वरुप ही हैं. 

 

© राज़ नवादवी

भोपाल, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

बुधवार २८/०८/२०१३ 

 

Views: 205

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service