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ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 32 की समस्त रचनाएँ

सुधिजनो !

दिनांक 24 नवम्बर 2013 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 32 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.

इसी बीच 23 और 24 नवम्बर को लखनऊ में आदरणीया पूर्णिमा वर्मनजी के सौजन्य से गीत-नवगीत पर राष्ट्रीय स्तर का एक अभूतपूर्व कार्यशाला सम्पन्न हुआ जोकि पूरे-पूरे दिन के कई सत्रों में विभक्त था. चूँकि मैं भी आमंत्रित था. इस कारण आयोजन के दौरान लगातार ऑनलाइन हो पाना संभव नहीं हो पाया.  इसका मुझे हार्दिक खेद है.

किन्तु, यह भी सत्य है कि मंच के आयोजनों के प्रति सदस्यों का उत्साह और उनका गंभीर प्रयास अभिभूत करता है. इस तथ्य को इसी बात से समझा जा सकता है कि इस दो दिवसीय आयोजन में 17 रचनाकारों की निम्नलिखित 14 छंदों, यथा,
पञ्चचामर छंद
दोहा छंद
कुण्डलिया छंद
दुर्मिल सवैया छंद
मदिरा सवैया छंद
चौपाई छंद
वीर या आल्हा छंद
सार या ललित छंद
मनहरण घनाक्षरी
गणात्मक घनाक्षरी
गीतिका छंद
कामरूप छंद
मालिनी छंद
सरसी छंद
जैसे छंदो में यथोचित रचनाएँ आयी और कुल हिट्स की संख्या रही 670, जिनसे छंदोत्सव समृद्ध हुआ ! दो दिवसीय इण्टरऐक्टिव आयोजन के लिहाज से ये आँकड़े किसी ऑनलाइन आयोजन की सफलता की मुखर उद्घोषणा हैं.

आयोजनों का मूल मक़सद यही है कि मंच पर आयोजन का पटल रचनाकर्म के प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ छंद-कविताई पर कार्यशाला की तरह लिया जाय. इस हेतु कई रचनाकार सकारात्मक रूप से आग्रही भी दीखते हैं. लेकिन पुनः कहना पड़ रहा है कि कई रचनाकार अपनी प्रस्तुति को साझा करने के बाद कायदे से मंच पर ही नहीं आते, टिप्पणियों के माध्यम से बन रहे संवाद का लाभ क्या उठायेंगे !  यह किसी रचनाकार की विवशता हो सकती है, इसे हम सभी समझ सकते हैं, लेकिन यदि यह किसी की प्रवृति ही हो तो ऐसी प्रवृति या आचरण किसी तरह से यह अनुकरणीय नहीं है.

यह अवश्य है कि आदरणीया सरिता भाटियाजी, आदरणीया गीतिकाजी और आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी को पिछले कई-कई आयोजनों में अबतक मिले सुझावों पर गहन मनन और तदनुरूप गंभीर अभ्यास करने की महती आवश्यकता है. अन्यथा रचनाकर्म के प्रति उत्साही होने का कोई अर्थ नहीं है.

नये रचनाकारों में भाई रमेश चौहान जी की संलग्नता आश्वस्त तो करती है, किन्तु, उन्हें बेसिक व्याकरण पर ही अभी बहुत काम और अध्ययन करने की जरूरत दीख रही है. इसके प्रति उन्हें आग्रही बनना पड़ेगा. हाँ, कई रचनाकारों, जैसे कि भाई अरुन शर्मा 'अनन्त' जी, भाई संदीप कुमार पटेल जी, आदरणीय रविकरजी, आदरणीय अजित शर्मा आकाश आदि की प्रस्तुतियों में स्पष्ट हो रही या हो गयी प्रगति आह्लादित करती है. विशेषकर आदरणीय अरुण निगम जी की आल्हा प्रस्तुति पर मन बरबस वाह-वाह करता हुआ अभीतक मुग्ध है. हालाँकि अतिशयोक्ति वाला पहलू पूरी रवानी में प्रतीत नहीं हुआ है.

एक बात भाई संजय मिश्राजी के प्रयास पर अवश्य कहना चाहूँगा कि छंदोत्सव शास्त्रीय छंदों पर अभ्यास हेतु माहौल बनाने का काम करता है. आपने सरसी छंद पर बहुत सुन्दर प्रयोग किया है. लेकिन जैसा कि भाई संदीपजी ने स्पष्ट किया है कि उनकी प्रस्तुति सरसी छंद की रह ही नहीं गयी. जबकि इस आयोजन में सरसी छंद य़ा किसी मूल छंद में प्रस्तुति की अपेक्षा थी.

जैसा मुझे याद आरहा है, पिछले कुछ आयोजनों में भी कुछ रचनाकारों ने छंद प्रस्तुतियों में ऐसे प्रयोग किये थे जिन्हें सादर अमान्य कर शुद्ध छंद के लिए उनसे अनुरोध किया गया था. उन अनुरोधों पर सभी ने अपने प्रयोग को शुद्ध कर मूल छंद में अपनी रचनाएँ पोस्ट की थीं.

ऐसा नहीं है कि हम प्रयोगधर्मिता को नकारते हैं बल्कि, आयोजन के उद्येश्य के प्रति विन्दुवत रहना कई भटकावों से हमें बचाये रखता है. इस तरह के किसी विधा प्रयोग के लिए महोत्सव का आयोजन तो है ही जहाँ हर तरह के विधानों पर रचनाएँ डाली जा सकतीं हैं और उनके होने पर चर्चा-परिचर्चा हो सकती है.

खैर, आयोजन की सफलता और सदस्यों में इसकी लोकप्रियता यही बताती है कि जो रचनाकार इस सकारात्मक वतावरण का लाभ ले रहे हैं वे काव्यकर्म के कई पहलुओं से जानकार हो रहे हैं.

इस बार पुनः इस आयोजन में सम्मिलित हुई रचनाओं के पदों को रंगीन किया गया है जिसमें एक ही रंग लाल है जिसका अर्थ है कि उस पद में वैधानिक या हिज्जे सम्बन्धित दोष हैं या व पद छंद के शास्त्रीय संयोजन के विरुद्ध है. विश्वास है, इस प्रयास को सकारात्मक ढंग से स्वीकार कर आयोजन के उद्येश्य को सार्थक हुआ समझा जायेगा.

मुख्य बात -  तुम्हारे, नन्हें, नन्हा आदि शब्दों के प्रयोग में सावधान रहने की आवश्यकता है. आंचलिक शब्दप्रधान रचनाओं और खड़ी हिन्दी की रचनाओं में इनकी मात्राएँ अलग होती हैं, जोकि स्वराघात में बदलाव के कारण होता है.



आगे, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

भाई गणेशजी ने समय पर रचनाओं के संकलन का कष्टसाध्य कार्य सम्पन्न किया है अतः हार्दिक बधाई के पात्र हैं. ओबीओ परिवार आपके दायित्व निर्वहन और कार्य समर्पण के प्रति हृदय से आभारी है.


कई कार्यों के एक साथ सिर पर आजाने के कारण मंच को आवश्यक समय नहीं दे पाया हूँ इस हेतु पुनः खेद व्यक्त कर रहा हूँ.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव
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1- राजेश कुमारी जी

छंद - पञ्च चामर

संक्षिप्त विधान - (लघु गुरु x 8) x चार पद


उठा रही कठोर एक गाछ डाल चींटियाँ
बना रही सिखा रही विधान बाँध चींटियाँ
दिखे यहाँ परोपकार की मिसाल चींटियाँ
पढ़ा रही हमे यहाँ प्रयास पाठ चींटियाँ

जहाँ समान एकता सदा खुशी वहाँ मिले
जहाँ नहीं समानता समीपता कहाँ मिले
कड़ी कड़ी जुड़े जहां प्रगाढ़ श्रंखला मिले
जहां मिले अनेक हाथ बाँध प्यार का मिले

2- अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी 

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

धरती के इस छोर से, जाना है उस छोर।
कोशिश करती चींटियाँ, बिना मचाये शोर॥


जहाँ जोश, विश्वास है, सरल लगे हर काम।
चतुर चुस्त हैं चींटियाँ, करतीं कब आराम॥

दो टीलों को जोड़ती, लकड़ी के दो छोर।
गहरी खाई बीच में, हरियाली चहुँ ओर॥

जीवन सर्कस है यही, नन्हा जीव बताय।
लकड़ी पर सब चींटियाँ, करतब खूब दिखाय॥

जब हो धुन में चींटियाँ, हर बाधा बेकार।
खाई, पर्वत जो मिले, सब हो जाये पार ॥

गिरने से डरती नहीं, चींटी चतुर सुजान।
वो जाने हर जीव का, रक्षक है भगवान ॥

सिखलाती हैं चींटियाँ, देती हम को ज्ञान।
यह जीवन रणभूमि है, भागो मत इंसान॥

चींटी जैसा जोश हो, शुभ होगा हर काम ।
मानव की गुरु चींटियाँ, सादर करूं प्रणाम॥

3-सत्यनारायण सिंह जी 

छंद - मनहरण घनाक्षरी 

संक्षिप्त विधान - वर्णिक छंद (31 वर्ण)
चार चरण आवृती 8, 8, 8, 7 = 31
(16, 15 वर्ण पर यति होती है चरण के अंत में गुरू)

टीले दो हठीले बड़े, गर्व से हैं तने खड़े।
हरी हरी घासों वाली, धारे शीश टोपियाँ।।


अपनी उँचाई का ही, मान अभिमान बड़ा।
मद में हो चूर आज, नापें नभ दूरियाँ।।


संघ और साहस का, नहीं अनुमान इन्हें।
चींटियों के साहस की, उड़ा रहे खिल्लियाँ।।


जग के नियंता की हैं, सही अभियंता यही।
सेतु का निर्माण करें, साहसी छः चींटियाँ।।

कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

भोली भाली चींटियाँ, नन्ही इनकी जान।
साहस उद्यम एकता, इनकी है पहचान।।
इनकी है पहचान, चित्र यह बात बताता।

कठिन कार्य आसान, संगठन से हो जाता।।

साहस का आभास, कराती इनकी टोली।

उद्यम का नवगीत, सिखाती चींटी भोली।।

4-रमेश कुमार चौहान

छंद - गीतिका 
(14,12 पर यति 3री, 10वीं 17वीं एवं 24वीं मात्रा लघु पदांत गुरू लघु गुरू

2122 2122, 2122 212 पदानुक्रम)


देख कैसे चीटियां सब, शृंखला मिल कर रचें ।
साथ देतीं दूसरों का, काम से ना वे बचें ।।
काष्‍ठ एक मिल ढो रहीं वे, कामना निर्माण का ।
खूब दम मिल ये लगावें, डर नहीं है प्राण का ।।

चीटियां जो काम सारे, शान से मिल कर करें ।
सीख लो साथी हमारे, शक्ति हम कैसे वरें ।।
बोझ चाहे हो बड़ा सा, भार भारी ना लगे ।
चार मिल हम एक रहे तो, काम दुश्‍कर ना लगे ।। 

सृष्‍टि सीखावे हमे तो, पाठ एकता का सदा ।
रंग सातों रैनबो में, देख लो इनकी अदा ।।
पुष्‍प नाना बाग में जो, वाटिका ही हो सही ।
घास तिनका घोसला हो, घोसला तिनका नही ।।

छंद कामरूप
(चार चरण, प्रत्येक में 9. 7. 10 मात्राओं पर यति, चरणान्त गुरु-लघु से)

पाले रीतियां, ये चीटियां, दे रही संदेश ।
अनुशासीत हो, आप सब जो, न हो कोई क्लेश ।
एकता में बल, ना करो छल, शंका न लवलेश ।
सफल जो होना, साथ रहना, विनय करे "रमेश"।।

5-सुशील जोशी जी 

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

चींटी बढ़ती जा रही, दाना एक उठाय।
गिरती, सँभली, फिर गिरी, पर मंज़िल पा जाय।।
पर मंज़िल पा जाय, बताती हमको हर पल,
कठिन समय आ जाय, न छोड़ो सच का आँचल।
अगर लगन हो संग, मिले हर मंज़िल मीठी,
देकर के यह ज्ञान, चली मंज़िल को चींटी।

डाली लेकर चींटियाँ, चली समंदर पार।

थोड़ा मुस्का दीजिए, नहीं चौंकिए यार।।

नहीं चौंकिए यार, बनी डाली की नैया,

बहा चली फिर नाव, स्वयं ही धारा मैया,

देते हैं सब साथ, अगर हो लगन निराली,

तूफाँ को भी पार, करे फिर छोटी डाली।

6-अरुन शर्मा 'अनन्त' जी 

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

दो टीलों के मध्य में, सेतु करें निर्माण ।
निडर जूझती चींटियाँ, चाहे जाए प्राण ।१।

दो मिल करती संतुलन, करें नियंत्रण चार ।
देख उठाती चींटियाँ, अधिक स्वयं से भार ।२।

मंजिल कितनी भी कठिन, सरल बनाती चाह ।
कद छोटा दुर्बल मगर, साहस भरा अथाह ।३।

बड़ी चतुर कौशल निपुण, अद्भुत है उत्साह ।
कठिन परिश्रम को नमन, लगनशीलता वाह ।४।

जटिल समस्या का सदा, मिलकर करें निदान ।
ताकत इनकी एकता, श्रम इनकी पहचान ।५।

7-संदीप कुमार पटेल जी 

घनाक्षरी - वर्णिक छंद (31 वर्ण)

(16, 15 वर्ण पर यति होती है चरण के अंत में गुरू होता है)

काम हों बड़े सही नहीं रुकें कभी थकें न
चीटियाँ प्रयास के महत्व को दिखा रहीं


तोड़ के विराम बंध एक एक हाथ जोड़
बाँट बाँट काम वो समूह भी बना रहीं


हार मानती नहीं विशाल चोटियाँ निहार
देह से लहान किन्तु जोर तो लगा रहीं


सेतु को बना रही उठा विशाल काष्ठ खंड
शक्ति एकता रखे समाज को सिखा रहीं

8- सचिन देव जी

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

इनकी हिम्मत को करें , हम झुककर प्रणाम

दुर्गम पथ व लक्ष्य कठिन, पर चाहें परिणाम !! 1!!

नन्हे-मुन्ने पग धरें, आगे बढते वीर

सेतु बाँधन को देखो, ये कितने गंभीर !!2!!

राहें कितनी हो कठिन, कभी न छोडो आस

धुन के पक्के हो अगर, होत सफल प्रयास !!3!!

मिल जुलकर सब बढ़ चलें, जब मुश्किल हो राह

राह मैं अड़चन आए, थामे बढ़कर बांह !!4!!

रुको मंजिल पाकर ही, करो एक दिन रात

मन में सच्ची हो लगन, चींटी सेतु बनात !!5!!

9 - रविकर जी 

मदिरा सवैया ( भगण X 7 + गुरु )

पञ्च पिपीलक पिप्पल पेड़ पहाड़ समान उठावत है ।

जीत लिया जब द्वीप नया, तरु से दुइ दीप मिलावत हैं ।

दुर्गम मार्ग रहा बरसों कल सों शुभ राह बनावत है।

रानि निगाह रखे उन पे जिनके हित काम करावत है ।

दुर्मिल सवैया (सगण x 8)

इस ओर गरीब-फ़क़ीर बसे, उस ओर अमीर-रईस जमा।

जनतंतर जंतर-मंतर से, कुछ अंतर भेद न छेद कमा ।

सरकार रही सरकाय समा, जन नायक मस्त स्वमेव रमा ।

इन चींटिन सा सदुपाय करो, करिये इनको मत आज क्षमा |

शुभ बुद्धि विवेक मिले जब से, सब से खुद को मनु श्रेष्ठ कहे ।

पर यौनि अनेक बसे धरती, शुभ-नीति सदा मजबूत गहे ।

कुछ जीव दिखे अति श्रेष्ठ हमें, अनुशासन में नित बीस रहे ।

जिनकी अति उच्च समाजिकता, पर मानव के उतपात सहे ॥

छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।

रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य ।

पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर ।

प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।

रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव ।

रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥

बड़ा स्वार्थी है मनुज, शक्कर खोपर चूर ।

चींटी खातिर डालता, शनि देते जब घूर ।

शनि देते जब घूर, नहीं तो लक्ष्मण रेखा ।

मानव कितना क्रूर, कहीं ना रविकर देखा ।

कर्म-योगिनी श्रेष्ठ, नीतिगत बंधन तगड़ा ।

रखें चीटियां धैर्य, व्यर्थ ना जाँय हड़बड़ा ॥

10 - अरुण कुमार निगम

छंद - आल्हा 

16, 15 मात्राओं पर यति देकर दीर्घ,लघु से अंत, अतिशयोक्ति अनिवार्य

देह मूँगियाँ रेंग गई हैं , देख चींटियों का यह काम
प्रेषित उनने किया नहीं है, किन्तु मिला हमको पैगाम ।
अनुशासित हैं सभी चींटियाँ, नहीं परस्पर है टकराव
मन्त्र एकता का बतलातीं, और सिखाती हैं सद्भाव ।

बचपन में थी पढ़ी कहानी , आखेटक ने डाला जाल
फँसे कबूतर परेशान थे , दिखा सामने सबको काल ।
वृद्ध कबूतर के कहने पर , सबने भर ली संग उड़ान
आखेटक के हाथ न आये , और बचा ली अपनी जान ।

क्या बिसात सोचो तिनकों की, हर तिनका नन्हा कमजोर
पर हाथी भी तोड़ न पाये , जब बन जाते मिलकर डोर ।
नाजुक नन्हीं-नन्हीं बूँदें , कर बैठीं मिल प्रेम - प्रगाढ़
सावन में बरसी भी ना थीं , सरिताओं में आई बाढ़ ।

सागर पर है पुल सिरजाना , मन में आया नहीं विचार
रघुराई की वानर - सेना , झट कर बैठी पुल तैयार ।
नहीं असम्भव कुछ भी जग में,मिलजुल कर मन में लो ठान
किया नहीं संकल्प कि समझो , पर्वत होवे धूल समान ।

जाति-धर्म का भेद भुलाके , एक बनें हम मिलकर आज
शक्ति-स्वरूपा भारत माँ का, क्यों ना हो फिर जग पर राज ।
नन्हें - नन्हें जीव सिखाते , आओ मिलकर करें विचार
मन्त्र एकता का अपनायें , करें देश का हम उद्धार ।

11-गीतिका 'वेदिका'

छंद - सार/ ललित छंद

संक्षिप्त विधान:- सार/ ललित छंद मे चार चरण होते है, सोलह और बारह की मात्राओं पर यति होता है, प्रत्येक पदांत गुरु से होता है.

गणित चींटियों वाले देखो, एक भाव सहकारी |

तत्पर होकर करें भूमिका, पूरी ज़िम्मेदारी ||

गणित चींटियों वाले देखो, तन-मन से जुट जाना |

छोटे प्राणी से हम सीखें, साथी हाथ बढ़ाना ||

गणित चींटियों वाले देखो, चींटी की सच्चाई |

कब हमने देखा चींटी में, आलस औ' जम्हाई ||

गणित चींटियों वाले देखो, अनुपम भाव सुहाने |

सेतुबांध बांधें सब चींटी, कर्म महत्ता जानें ||

गणित चींटियों वाले देखो, सुरभित सामूहिकता |

समयानुसार लगातीं युक्ति, साथ नम्यता दृढ़ता ||

संशोधित पंक्ति - समय देख कर जुगत लगाती, साथ नम्यता दृढ़ता ॥

छंद - चौपाई

संक्षिप्त विधान - प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं. चरणान्त में जगण और तगण नहीं होता।

एक डाल दो द्वीप मुहाने !

चली चींटियाँ सेतु बनाने !!

एक अलग करती अगवाई !

दो ने मिल के डाल धराई !!

दो आधार थामती देखो !

आपसदारी इनसे सीखो !!

सर्वसमावेशी यह कुनबा !

आपा तज हुई एकरूपता !!

संशोधित पंक्तियाँ -

संयम नियम धारणा देखो !
आपसदारी इनसे सीखो !!
सर्वसमावेशी यह कुनबा !
कार्य सिद्धि वश एक रूपता !!

12-सरिता भाटिया

छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

भागो मत इन्सान रे ,जीवन है संग्राम
चींटी देती सीख है ,करो इन्हें प्रणाम /
करो इन्हें प्रणाम , श्रम से सभी है साधा
खाई पर्वत लांघ , दूर करें सभी बाधा
मान न छोटे कीट, देख के इनको जागो
जीवन है संग्राम ,नहीं मुश्किल से भागो //

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

हरियाली फैली हुई, खाई बीचों बीच
ऊपर नीला आसमां, काठ रही हैं खींच/

बोझा चाहे हो बड़ा ,संग उठातीं भार
खाई पर्वत हो कठिन ,जाना है उस पार /

चींटी केवल चार हैं ,थामे हैं इक काठ
दो को पार लगा रहीं ,देखो इनके ठाठ/

सेतु का निर्माण करें,संघ का देय ज्ञान
राहें कितनी हों कठिन,इनका कर्म महान /

होते सफल प्रयास हैं ,नहीं छोड़ना आस
निर्भयता की सीख दें ,श्रम इनका विश्वास /

13-संजय मिश्रा हबीब

सरसी छंद पर आधारित (चार चरण | 16-11 मात्राएं | सम चरणांत गुरु-लघु |)

अंतर्निहित सफलता चाहे, दुष्करतम हो कर्म।
अगर एकता की अपना लें, सत्य सनातन धर्म।

हम आनंदित होंगे, आयें, कांटे घोर समक्ष,  
कभी न चाहें पाँव हमारे, राहें सीधी, नर्म।

मिल जाएँ ये सागर बादल, हो जाते साकार,
नन्ही बूंदें सिखलाती हैं, मंत्र, महत्तम मर्म।  

हमें प्रभावित कर पाया है, नहीं द्वेष का शीत,
दिल का कोना कोना अपना, सद्भावों से गर्म।

वो ही दाता वो ही त्राता, सबका एक ‘हबीब’,
लक्ष्य सुगम वो कर देता है, बस मांगे सत्कर्म।

14- लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

चींटी से है सब बड़े, करते बड़े बवाल ,
अनुशासन रखते नहीं, करतें खड़े सवाल |
करतें खड़े सवाल, गलत हो गईं नीतियां,
देकर हमको ज्ञान, सिखाएं नित्य चींटियाँ ||
बिना किये श्रमदान, हमें भौतिक-सुख टीसे,
कह लक्ष्मण कविराय, सीख ले यह चींटी से ||


चींटी सब मिलकर करे, सैनिक जैसा काम,
राम-सेतु निर्माण में, अभियन्ता सा नाम |
अभियन्ता सा काम, करती जाती चींटियाँ
देने को संज्ञान, प्रयास करती पीड़ियाँ ||
करते सदा प्रयास, बजे मुहं से तब सीटी,
मुहं में टुकड़ा दाल, मदमस्त बढती चींटी ||

15- डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव 

छंद- मालिनी

संक्षिप्त विधान- इसके प्रत्येक चरण में 15 वर्ण , आठवे तथा सातवे वर्ण पर विराम देकर होते है. प्रत्येक चरण में 2 नगण 1 मगण व 2 यगण होते है

I I I I I I S S S I S S I S S

यदि तल गहरा है तो उसे नाप लेंगे I

रस-प्रिय हम भारी काठ को माप लेंगे I

सर पर यदि है आकाश थोडा हमारे

निडर हम उसी से हौसला आप लेंगे II

नवल सुमन है तो बाटिका में खिलेंगे I

तरल पवन झोंको से निराला हिलेंगे I

हम सब रस दीवाने जमेंगे यहाँ ही

रस मधुर जहां होगा वही तो मिलेंगे II

हम कर सकते है, ये जमाना न माने I

रस-सुरस मिलेगा भार होंगे उठाने I

सरल न समझो मौका पड़ा काट लेंगे

महज लघु हमें आसान चीटी न जाने II

16-अशोक कुमार रक्ताले जी

छंद - कुण्डलियाँ
संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

सीधी साधी चींटियाँ, दिखती हैं सब लाल |

अत्याधिक श्रम से हुआ, देखो कैसा हाल |

देखो कैसा हाल, ठूंठ के इत-उत लटकी,

बना रही समपार, पाटने दूरी तट की,

चींटी दोनों छोर, लगे है आधी-आधी,

कुछ नटखट शैतान, और कुछ सीधी-साधी ||

17- अजित शर्माजी आकाश

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

कर्मवीर ये चींटियाँ देती हैं सन्देश

मंज़िल पाने के लिए सहना है हर क्लेश !!

करती हैं श्रम-साधना सच्चे मन से रोज़

कर्मभूमि में है जुटी ये अनुशासित फौज !!

लक्ष्य-प्राप्ति हित हर घड़ी रहना है तैयार

खाई-पर्वत जो मिले, सब करना है पार !!

बाधाओं से क्यों डरें, क्यों बैठें थक-हार

त्याग-तपस्या के बिना किसका है उद्धार !!

रहना है संघर्ष-रत हमको आठों याम .

कितना भी दुष्कर लगे ये जीवन-संग्राम !!

कहती हैं ये चींटियाँ ‘ है आराम हराम ’

पानी है मंज़िल हमें हर दिन करके काम !!

इन जीवों को मिल रहा बस इसमें ही हर्ष

नींद और आलस्य तज करते हैं संघर्ष !!

दिन हो चाहे रात हो, प्रातः हो या शाम

इनको पल भर भी नहीं करना है विश्राम !!

नन्ही- नन्हीं चींटियाँ सिखलाती हैं ज्ञान

कर्म बिना पाया भला किसने लक्ष्य महान !!

थोड़ी सी तो सीख ले इनसे मानव- जाति

जुटे रहें निज कर्म में हम चींटी की भाँति !!


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Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ भाई  , क्षमाप्रार्थी हूँ , इस समय छंदोत्सव मे हिस्सा नही ले पाया , एक कुंडलिया की रचना की थी पर पोस्ट करने के योग्य नही लगी , पहला प्रयास किया था !!! और फिर जैसे आपने आदरणीया प्राची जी को नवगीत के विषय मे समझाया था , लिखने का तरीका , मै भी दो दिन नवगीत लिखने के प्रयास मे पड़ गया और पूरा कर भी लिया ! बस यही कारण था !! अगली बार ज़रूर प्रयास करूंगा !!!!

:-)))))

यानि, आप सकर्मक मौन धारे बैठे थे... . :-)))))

आपके नवगीत की मंच को प्रतीक्षा रहेगी.

सादर

आदरणीय सौरभ सर इस बार के छंदोत्सव का बहुत ही सूक्ष्म विश्लेषण कर आपने रिपोर्ट प्रस्तुत किया है, सारी बातें साफ है इस सफल आयोजन के लिये आपको बधाई

आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाईशिज्जू शकूरजी.

आप जैसे मनोयोगियों और काव्य अभ्यासकर्ताओं के समर्थन से मेरा उत्साह दूना हो गया है. विश्वास है, सभी रचनाकार मेरे प्रयास को सकारात्मक रूप से लेंगे और उनके रचनाकर्म में उत्तरोत्तर विकास होगा.

शुभ-शुभ

इस चित्र के अनुरूप आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी  का छंद मनहरण घनाक्षरी पढ़कर आनंद आ गया.

टीले दो हठीले बड़े, गर्व से हैं तने खड़े।         हरी हरी घासों वाली, धारे शीश टोपियाँ।।

अपनी उँचाई का ही, मान अभिमान बड़ा।     मद में हो चूर आज, नापें नभ दूरियाँ।।

संघ और साहस का, नहीं अनुमान इन्हें।       चींटियों के साहस की, उड़ा रहे खिल्लियाँ।।

जग के नियंता की हैं, सही अभियंता यही।      सेतु का निर्माण करें, साहसी छः चींटियाँ।।

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