For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कृति “छंद माला के काव्य-सौष्ठव” का साहित्य शास्त्रीय स्वरूप...(पुस्तक समीक्षा)

 

दिनांक: ०३.०२.२०१६

 

कृति “छंद माला के काव्य-सौष्ठव” का साहित्य शास्त्रीय स्वरूप...(पुस्तक समीक्षा)

 

कविवर केवल प्रसाद ‘सत्यम’ द्वारा विरचित ‘छंद माला के काव्य-सौष्ठव’ के अंतर्गत विविध छंदों में सत्तावन अलग-अलग शीर्षकों में विभिन्न विषयों पर आधारित रचनायें संकलितहैं.  संग्रह के अंत में प्रयुक्त हुये छंदों का संक्षिप्त शास्त्रीय विधानों का भी उल्लेख किया गया है.  इस कृति का अधिकांश भाग ‘दोहा छंद’ से महिमामण्डित  है, शेष अन्य शीर्षकों में सवैया, घनाक्षरी में सर्वल्ध्वक्षर, डमरू, कलाधर, अनंगशेखर वर्णिक छंद तथा दोधक, द्रुतमध्या, गीतिका, हरिगीतिका, चौपाई, वैभव व आल्हा अर्थात वीरछंद आदि मात्रिक छंदों के साथ कुंडलिया मात्रिक प्रगाथ (संयुक्त छ्न्द) आदि छ्न्दों का लक्षणों के अनुसार सात्विक प्रयोग किया गया है.

कृति में ‘सद्गुरु की महिमा’, ‘गणपति हैं सरकार’, ‘राष्ट्र-प्रेम’, ‘बच्चे हुये अधीर’ ‘मद्य-निषेध’, ‘पानी’, ‘नीति के दोहे’ आदि के अतिरिक्त प्रकृति की सौम्यता,    जन-जीवन, पूजन की समाग्री, रंगों व औषधियों आदि विषयों से परिपुष्ट सार्थक दोहे सरल कथ्य रूप में प्रस्तुत किये गये हैं.  दोहा छ्न्द पूर्वापर निर्पेक्ष मुक्तक छ्न्दों का महत्वपूर्ण स्वरूप है. यह आज के व्यस्ततम जीवन में सहृदय पाठकों को क्षण भर में वह सारे रसास्वादनों का अनुभव करा देता है जो एक खंडप्रबंध काव्य या अन्य लम्बी-लम्बी रचनाओं में महिमामण्डित रहता है.  मात्र ४८ मात्राओं में नियोजित दोहा छंद के प्रथम  चरण में कोई बात उदित होकर दूसरे चरण तक पहुंच कर विकसित हो जाती है; जो तीसरे चरण में निश्चय बोधक रूप धारण कर प्रमाणित हो जाती है और फिर चौथे चरण में वह बात फलागम का रस स्वादन करा देने में सक्षम हो जाती है.  कहने का तात्पर्य यह कि एक लघु कायिक दोहा छंद की वस्तु-योजना में आरम्भ से लेकर फलागम तक सभी अवस्थायें विद्यमान रहती हैं.  हर्ष की बात यह है कि कृतिकार ने अपनी इस कृति में दोहा छंद को प्रथम वरीयता दी है और कृति का अधिकांश भाग दोहा छंद से ही सुसज्जित भी किया है.  उदाहरणार्थ निम्नवत एक दोहा छंद का उत्कृष्ट काव्य-शिल्प दृष्टव्य है:-

फूल परागों से भरे, महके दिश में गंध.                                                  

भ्रमर-कीट-जन श्वांस में लेते रहे सुगंध.

इस कृति के सवैया छंद में भी कृतिकार का काव्य-कौशल देखने योग्य है.  सवैया  एक वर्णिक छंद है जिसका विस्तार २२ से २६ वर्णों के बीच ही होता है.  आधुनिक आचार्यों ने उक्त के अतिरिक्त २१ वर्णिक अहि सवैया को भी मान्यता दी है.  यद्यपि कि खड़ी बोली में सवैया छंद का निर्वाह करना प्राय: दुष्कर होता है फिर भी कृतिकार ने इन सवैया छंदों में पारम्परिक लक्षणों का प्रतिपादन सम्पूर्णता से निर्वहन किया है. वस्तुत: कवि को छंदोंच्चारण में मौन (विराम) का सहारा लेकर कतिपय स्थलों पर लय की सुरक्षा करनी पड़ती है किंतु यहां पर कृतिकार ने बिना मात्रा गिराये अथवा मात्रा का छूट लिये ही खड़ी बोली में निर्दोष सवैया रच डाली है.  साक्ष्य के तौर पर शांत, भक्ति रस से आप्लावित आठ सगण में निबद्ध दुर्मिल सवैया छंद की मनोहर छटा का अवलोकन करें:-

चरणामृत जीव पियें मन से, तन का प्रतिबंध मिटे जग से.                                    

सब दोष वियोग प्रमाद मिटे, सुख के प्रतिबद्ध रटे जग में.                                     

हर श्वांस जपे हरि नाम सदा, प्रतिमान सुगंध पटे जग में.                                  

            हरि के अभिनंदन पूजन से, रवि का अनुबंध अटे जग में.   

इस कृति में कवि ने कलाधर छंद में घनाक्षरी प्रस्तुत किया है. धनाक्षरी गण मुक्त वर्णिक दण्डक छंद होता है.  इकत्तीस वर्णों के इस छंद में प्रति पद के यति क्रम में ८,८,८ व ७ वर्णों के क्रमानुसार प्रयोग होता है. यथा सम्भव इन्हीं में ही पद पूर्ण हो जाना चाहिये.  हर्ष की बात है कि यहां घनाक्षरी छंद-रचना में कृतिकार ने इन बिंदुओं को दृष्टि में रखकर ही धारा प्रवाह छंदों की रचना करते हुये एक सफल कवि के दायित्वों का निर्वाह किया है.  कलाधर घनाक्षरी छंद में बसन्त ऋतु की मनोहारिणी छटा का एक उद्धहरण देखें:-

अंग अंग में तरंग, बोल-चाल में विहंग, सृष्टि धूप में रसाल, बौर रूप आम है.                    

रूप-रंग बाग अंश,अग्नि-बाण ढाक संग, शम्भु ने कहा अनंग, सौम्य रूप काम है.               

प्राण-प्राण में उमंग, रास-रंग में बसंत, ऊंच – नीच - भेद - भाव, टूटता धड़ाम है.                  

                प्रेम का प्रसंग फाग, रंग- भंग भी सुहाग, अंग से मिले सुअंग, हर्ष को प्रणाम है.

उपर्युक्त छंद में संरचना- लालित्य के साथ-साथ कथ्य-लालित्य भी बेजोड़ है.  बसंत ऋतु में नर-नारी मदमस्त अवस्था में उड़ी-उड़ी बातें व हॅंसी-ठिठोली करते हैं.  छंद में उपस्थित पदावली ‘बोल-चाल में विहंग’ का ध्वनि मूलक अन्यार्थ उड़ती हुई बातों का ही माहौल विस्तारित करते हैं.  यही नहीं पूरा का पूरा छंद ही व्यंजना के वैभव के द्युतिमान है.  बसंत का साम्राज्य समता मूलक है जहां सभी भेद-भाव ध्वस्त हो जाते हैं. छंद में अनुप्रास, रूपक आदि अलंकार मात्र अलंकार नही हैं बल्कि यह अलंकार ध्वनि के माध्यम से व्यंजित होकर अलंकार्य हो गये हैं जो अलंकार व्यंजना का प्रतिफलन ही होता है.  कृति के अन्य बहुत से छंदों में ध्वनिकाव्य (उत्तम काव्य) की झलक वस्तु-व्यंजना व अलंकार-व्यंजना के माध्यम से बिम्बित है.  उपर्युक्त छंद में प्रयुक्त देशज शब्द ‘धड़ाम’ खड़ी बोली की शब्दावली में भी अपना भरपूर वज़न कायम रखता है.  इस कृति में अन्य प्रकार के छंदों में भी समुचित लय व शास्त्रीय नियमों का बड़ी ही सावधानी से सफल निर्वहन किया गया है. 

कुंडलिया छंद की रचना दोहा छंद को आगे बढ़ाकर की जाती है.  दोहा छंद अपने आप में पूर्ण होता है क्योंकि कही गई बात दोहा के चतुर्थ चरण में समाप्त हो जाती है. इसे आगे बढ़ाने के लिये सिंहावलोकन की पद्धति अपनानी पड़ती है और दोहा के अंतिम चरण की पुनरावृत्ति कर कही गयी बात को अगली बात से जोड़ा जाता है.  कुंडलिया छंद में यह काम रोला छंद को जोड़ कर किया जाता है.  रोला छंद के आरम्भ में ११ मात्रिक दोहा का सम चरण आने कारण ही यति क्रम उलट कर  ११ – १३ हो जाता है.  कुंडलिया छंद, दोहा छंद के आगे बढ़ायी गई बात को रोला छंद के चार चरणों को जोड़  कर पूरा किया जाता है.  दोहा छंद के आरम्भ का शब्द अथवा शब्दों के समूह को अंतिम पद के अंत में पुनरावृत्ति कर प्रगाथ (संयोजन) को पुष्ट व प्रवाहमय कर लिया जाता है जैसा कि कृति में कृतिकार द्वारा कुंडलिया छंद में अक्षरश: निभाया भी गया है.

कृति ‘छंद माला के काव्य-सौष्ठव’ में कला पक्ष की भांति इसका भाव पक्ष भी समृद्धिशाली है.  रीति – नीति - प्रीति से पगी कृति की कथ्य-सामाग्री विसंगतियों व युगबोध को उजागर करती हुयी आज के संदर्भ में पर्यावरण व प्रदूषण आदि पर भी बहुत कुछ कहती है जिससे पाठक अनमन्यस्क नहीं रह पाता है.  कृति में विभावादि से व्यक्त होने वाला रसिक का रति आदि स्थायी भाव प्रधान चमत्कारी व्यंग्यार्थ रूप में उपस्थित होकर शृंगार-शांत आदि रस-ध्वनि काव्य की सृष्टि करता है.  कृति की भाषा सरस व सरल खड़ी बोली हिंदी है.  मधुर-कांत शब्दावली के प्रयोग ने सभी प्रकार के छंदों में प्रसाद व माधुर्य गुण आप्लावित कर दिया है.  इस उपयोगी और मनोहारी काव्य-कृति के प्रणयन के लिये कृतिकार केवल प्रसाद ‘सत्यम’ को हृदयतल से साधुवाद.

रामदेव लाल ‘विभोर’

महामंत्री

काव्य-कला संगम, लखनऊ-५

सम्पर्क......०९३३५७५११८८

Views: 3617

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service