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ग़ज़ल...न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

1222 1222 1222 1222
अभी ये आँखें बोझिल है निहाँ कुछ बेक़रारी है
न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है

सितारो क्यों परेशां हो अगर है चाँद पोशीदा
तुम्हारी जाँ-फ़िशानी से उदासी हर सू तारी है

चरागों सा जले फिर भी अँधेरा कम नहीं होता
धुआँ बनके बिखर जाएं यही किस्मत हमारी है

ये अक्सर नाक पर लेकर अना जो घूमते हो तुम
कहीं से मांग कर लाये हो या सच में तुम्हारी है 

गुजारी ज़िन्दगी कैसे बताएं किस तरह अय 'ब्रज'
हमारी मुश्किलों से ही अभी तक जंग जारी है

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 762

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 19, 2018 at 8:02pm

शुक्रिया आदरणीय श्याम नारायण जी...सादर

Comment by Shyam Narain Verma on February 19, 2018 at 7:06pm
क्या बात है, हार्दिक बधाई l सादर

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