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बज़्म में ज़िक्र आम होता है
आदमी क्यों गुलाम होता है
 
जो हों पूरी तो हसरतें क्या है
यूँ ही जीवन तमाम होता है
 
तफसरा ज़िन्दगी  पे देते हैं 
जब भी हाथों में जाम होता है
 
वक़्त धोबी है पूरे आलम का 
आदतन बेलगाम धोता है
 
ज़िन्दगी हार के वो कहते है
जीत का ये इनाम होता है
 
मुफलिसी के तमाम किस्से है
एक फक्कड़ निजाम होता है
 
जिस को हासिल हुआ उसे पूछो 
एक किस्सा अनाम होता है  

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Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 9, 2011 at 6:57am
vandana ji atyant abhari hun
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 9, 2011 at 6:57am
saahil bhai abhaar
Comment by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 9, 2011 at 6:56am
baagi ji aap ne baja farmaya hai aap ki baat dhyan mein aagayi hai shukriya aap ka
Comment by Saahil on April 21, 2011 at 9:08pm
वक़्त धोबी है पूरे आलम का 
आदतन बेलगाम धोता है
khoobsurat ghazal! har sher dil ko cho gaya

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 21, 2011 at 8:56pm
अश्वनी शर्मा जी, अच्छी ग़ज़ल कही है आपने, ख्याल अच्छे है, चौथा शेर रदीफ़ से बाहर हो गया है उसपर नजरेशानी की आवश्यकता है | बधाई इस अभिव्यक्ति पर |

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