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उम्र गुज़रेगी कैसे तेरे बग़ैर

दे दिया दिल किसी को जाने बग़ैर
जी न पाऊँ अब उसको देखे बग़ैर

वो ही धड़कन वही है सांसें अब
ज़िंदगी कुछ नहीं है उसके बग़ैर

एक पल काटना भी मुश्किल है
उम्र गुज़रेगी कैसे तेरे बग़ैर

सोचता हूँ के भूल जाऊँ तुझे
रह नहीं पाता तुझको सोचे बग़ैर

कोई गुलशन कहाँ मुकम्मल है
फूल तितली गुलाब भौंरे बग़ैर

ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं है अब
काटता हूँ जो रोज़ तेरे बग़ैर

रिश्तों में प्यार की नमी रखिए
सूख जाते हैं फूल सींचे बग़ैर

देख लूँ इक निगाह भर के तुझे
दिल परेशॉ है तुझको देखे बग़ैर

आँख से आँख क्या मिली 'सूरज'
बस गया दिल में कोई पूछे बग़ैर

डॉ सूर्या बाली 'सूरज'
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by kanta roy on June 23, 2016 at 2:46pm

रिश्तों में प्यार की नमी रखिए
सूख जाते हैं फूल सींचे बग़ैर---वाह ! लाजवाब ग़ज़ल  कही  है  आपने  आदरणीय सूर्या बाली जी ,सभी  अशआर बेमिशाल  बने  है . बधाई  प्रेषित  है . 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 22, 2016 at 7:07pm
Dhanyvaad MAHENDRA Ji
Comment by Mahendra Kumar on June 22, 2016 at 8:28am
इस मीठी और प्यार भरी ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय!
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 22, 2016 at 12:42am

श्याम नारायण वर्मा जी और सुरेश कुमार कल्याण जी आप दोनों का बहुत बहुत आभार 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 21, 2016 at 4:18pm
बहुत ही सुन्दर रचना बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on June 21, 2016 at 11:01am
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

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