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बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212 2212

गज़ल

छिपता नहीं है दर्दे दिल पर तुम कसम तक खा गये
परहेज जो इतना किया पर क्या छुपा कर पा गये

तुम जानते इस दर्द को पहचानते हमदर्द को
गम बांटते तब ठीक था यह बात क्या गम खा गये

पहला अभी यह खब्त था पुरजोर सा वह जब्त था
सायक चुभा कब चश्म का धनु देखकर घबरा गये

यह इश्क है या फिर सजा इसके बिना भी क्या मजा
दृग-कोर ने क्या छू लिया तुम इस कदर शरमा गये

तब शर्म थी अब जोश है उनको कहाँ कुछ होश है
मदहोश हो यह क्या किया इतना कहर बरपा गये

जब इश्क में मन रम गया गम का समंदर थम गया
दिल आशना अब हो गया तुम क्या गजब यह ढा गये

उसकी नजर जब पास है तब मामला कुछ ख़ास है
वह शून्य है, आकाश है, तुम दो जहाँ पर छा गये

((मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by amita tiwari on June 5, 2016 at 8:17pm

यह इश्क है या फिर सजा इसके बिना भी क्या मजा
दृग-कोर ने क्या छू लिया तुम इस कदर शरमा गये

"बहुत गहरी पकड़  के लिए हार्दिक बधाई।"

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