For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तीर लगता आज सूना

बादल सा पल फिसल गया  

बिन बरसे ही निकल गया 
जाने गया किस व्यथित तीरे 
चुपके चुपके धीरे  धीरे 
धरा धरी सी अवाक रह गयी 
विरहनी सी निर्वाक  रह गयी 
बदरा जाने क्या कह  गया 
अश्रू ठहरा फिर बह गया  
उर्मिला की  इक आस सी 
अमावस में उजास सी 
गले सा कुछ रुद्ध गया 
दिया जला और बुझ गया 
कागा भी  कगराये तो क्या 
पलक पांवड़ा बिछाये तो क्या 
नयन बावरे राह  बुहारे 
पपीहा पी पी पीड़ पुकारे  
व्याकुल राहें ब्याकुल  राधा
मन भर  पाँव अनगिन बाधा 
जन मन धन  का रेला दूना 
क्यों तीर लगता आज सूना 
----------------------------------------
अमिता  तिवारी 
मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 406

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 5, 2016 at 8:29pm
आदरणीया अमिता तिवारी जी बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है। सस्नेह बधाई स्वीकार करें।
Comment by amita tiwari on June 5, 2016 at 8:24pm

"आदरणीया कांता जी, कल्पना जी,

आपकी प्रोत्साहित टिप्पणी के लिए सादर आभार।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 3:41pm

सुंदर भावों को पिरोया है आदरणीया अमिता जी , बधाई स्वीकारें |

Comment by kanta roy on June 2, 2016 at 11:08am
बादल सा पल फिसल गया
बिन बरसे ही निकल गया
जाने गया किस व्यथित तीरे
चुपके चुपके धीरे धीरे ..... हृदय से निकली पंक्तियाँ हृदय में जाकर ही वास करती है । भावों में पिरोये हुए मन को लुभाती सुंदर रचना सृजित हुई है यहाँ आपके द्वारा आदरणीया अमिता जी । बधाई प्रेषित है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
10 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service