For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ठठरी पर ईमानदारी /लघुकथा /कान्ता राॅय

ईमानदारी जरा चोटिल ही हुई थी कि मौके का फायदा उठा कुछ लोगों ने उसे निष्प्राण घोषित कर तुरत - फुरत में ठठरी पर कसने लगे । उन्हे डर था उसके वापस जिंदा हो गतिमान होने का ।
जिन चार कंधों पर उसकी अर्थीं उठाई जा रही थी उनमें सबसे आगे देश के कर्णधार थे उसके पीछे भ्रष्टाचार , देश के सफलतम व्यवसाई और शेयर दलाल थे ।
सबकी आँखें चमक रही थी । सबके मन में लड्डू फूट रहे थे कि पीछे रोती हुई जनता अचानक खुशी के मारे तालियाँ बजाने लगीं ।
तालियों की शोर पर काँधे देने वालों ने चौंक कर देखा तो ईमानदारी सारी रस्सी तोड़कर उठ बैठी थी ।
.
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 5:14pm
मै समझ गई कि ये चुक साहित्यिक दृष्टिकोण से एक विशेष गलती है जिसे लिखते वक्त ध्यान रखे जाने की बेहद जरूरत है । रचना पर आपकी उपस्थिति रचना को एक नवीन तराश के साथ मजबूती दे जाती है हमेशा ही । एक नये दृष्टिकोण का स्थापित कर देना लेखक के मन यही आपकी प्रतिक्रिया का सार निकल कर आता है हमेशा । सादर नमन आपको बारम्बार आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर जी ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2015 at 4:31pm

लघुकथा अच्छी लगी, आदरणीया कान्ताजी. हार्दिक बधाई.

जिन चार कंधों पर उसकी अर्थीं उठाई जा रही थी उनमें सबसे आगे नेता थे उसके पीछे भ्रष्टाचार , देश के सफलतम व्यवसाई और शेयर दलाल थे । 

उपर्युक्त वाक्य को और व्यवस्थित एवं तार्किक करें, आदरणीय़ा.

नेता के पीछे काँधा देते ’भ्रष्टाचार’ का क्या व्यक्तिकरण (personification) हो गया था ? भ्रष्ट विशेषण के साथ कोई संज्ञा होगी न ? फिर देश के सफलतम व्यवसायी और शेयर दलाल सभी जुट गये थे काँधा देने में ? समूहवाचक संज्ञा भी एकवचन में व्यवहृत होती है यदि उसे जातिवचक बना कर प्रयुक्त किया जाये.

लघुकथा के इंगित वस्तुतः प्रहारक हैं.

शुभेच्छाएँ

Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:24am
मेरा हौसला बढाने हेतु आदरणीय श्री सुनील जी तहे दिल से आभारी हूँ ।सब आप गुरू जनों से ही प्रेरित हो कर लिख रही हूँ । सादर
Comment by shree suneel on August 9, 2015 at 6:40pm
व्वाहह..बहुत ख़ूब.. आदरणीया कांता राॅय जी, आप अपनी पूरी विशेषताओं के साथ यहाँ भी हैं. बहुत प्रभावित किया इस लघु-कथा नें. हार्दिक.. हार्दिक बधाइयाँ आपको इस समर्थ लघु-कथा के लिए. सादर.
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:25am
अापके द्वारा कहें गये ये एक शब्द दुनिया भर के तमाम शब्दों पर भारी पड़ जाते है आदरणीय रवि जी । आपके द्वारा ये अनुपम "वाह " का पाना मुझे अचंभित कर गया कि क्या सच में कथा इतनी अच्छी है ..... आज पहली बार मुझे अपना लिखना कुछ लिखने जैसा का आभास हुआ । सादर अभिनंदन आपको ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:19am
आपके कहे से मै सहमत हूँ आदरणीय डा. विजय शंकर जी कि इमानदारी से सदा खतरा रहा है बेईमानी को लेकिन सदियों से इमानदारी अपना वजूद कायम कर अपने वर्चस्व का परचम फहराती ही रही । कथा पर आपका प्रोत्साहन भरे शब्द मुझे बेहद अच्छे लगे । सादर नमन आपको ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:16am
आभार आपको आदरणीय नरेंद्र जी रचना पसंद करने हेतु ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:15am
आदरणीय तेजवीर जी ,मेरी कोशिश पर मेरा हौसला वर्धन के लिये आभार आपको ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:13am
आभार आपको कथा का भाव पसंद करने हेतु आदरणीय विनय सर जी ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:12am
रचना पसंदगी के लिए आभार आपको आदरणीय ओमप्रकाश जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service