For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ठंडी थाली (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर

पति-पत्नी डाइनिंग टेबल पर लंच के लिए बैठे ही थे कि डोरबेल बजी 

पति ने दरवाज़ा खोला तो सामने ड्राइवर बल्लू था उसने गाड़ी की साफ़-सफाई के लिए चाबी मांगी तो उसे देखकर पति भुनभुनाये :

“आ गए लौट के गाँव से ... जाते समय पेमेंट मांगकर कह गए थे कि साहब, गाँव में बीबी बच्चों का इन्तजाम करके, दो दिन में लौट आऊंगा और दस दिन लगा दिए…”

 

क्रोधित मालिक के आगे निष्काम और निर्विकार भाव से, स्तब्ध खड़ा ड्रायवर, बस सुनता रहा-

 

“अब फिर बहाने बनोओगे कि फलाने-ढिकाने की तबियत ख़राब हो गई थी.....ये हो गया था या वो वो ..... देखो बल्लू अब ये नहीं चलेगा...... एक तो तुमको पांच हजार की पेमेंट दे..... रोज़ खाना भी खिलाये और तुम ऐसा करों....... अब तुम्हारी पेमेंट से दस दिन का पैसा काटूँगा और नौकरी करना है तो अपने खाने का इंतजाम कर लो

 

उसे कार की चाबी देकर दरवाजा बंद कर दिया पति डाइनिंग टेबल के पास पहुँच गए

पत्नी – “खाना ठंडा है, मैं गरम कर लाती हूँ

पति – “नहीं रहने दो, भूख नहीं है, खाने का मन नहीं कर रहा

पत्नी – “मन तो मेरा भी नहीं है

 

देर तक दोनों मौन बैठे रहे. इस मौन की चुप्पी पति ने तोड़ी.

पति – “बल्लू अब कुछ ज्यादा ही सिर चढ़ गया है

पत्नी- “सही कहा....”

 

फिर चुप्पी.....

पति- “बल्लू कल शाम से ट्रेन में बैठा होगा, आज बारह बजे पहुँचा होगा लगता है अपने कमरे पे नहीं गया, सीधे यहीं आ गया

पत्नी- “मैं भी यही सोच रही थी

पति – “वो कल शाम से भूखा होगा

पत्नी – “हाँ होगा तो....”

पति- “ऐसा करो एक थाली परोस के दे आओ उसे

एक निपुण गृहणी के सधे हाथ अकस्मात ही बड़ी तत्परता से सक्रीय हो गए। 

थाली परोसी और दरवाजा खोलकर बल्लू को आवाज लगाईं बल्लू दौड़ते हुए आया... देखा माता अन्नपूर्णा थाली लिए खड़ी है

आशा और विश्वास से प्रफुल्ल ड्रायवर की कृतज्ञ द्रवित आँखें

 

पत्नी लौटकर आई तो देखा कि पति थाली परोसकर, बड़े ही चाव से ठंडी दाल के साथ ठंडी चपाती खा रहे थे

 

-------------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------------

Views: 1573

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 28, 2015 at 1:36pm

आदरणीया कांता जी, यह प्रयास आपको पसंद आया, लिखना सार्थक हो गया. इस आत्मीय प्रशंसा और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ. सादर 

Comment by kanta roy on July 28, 2015 at 9:59am
वाह !!! भावों को कितना सुंदर निर्वहन हुआ है कथा में । मानव - मन की सहज आकलन । रूखा स्वर .....क्रोध और चिढ़ से गुजरता हुआ ममता की चौखट पर आ गिरता है । गजब की प्रस्तुति । आज की सुबह एक अच्छी कथा पढने का सुख लेकर हुआ है ... जरूर दिन अच्छा जायेगा । बधाई आपको आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 8, 2015 at 12:39am

आदरणीय  Shishir Dwivedi जी आपको लघुकथा पसंद आई, आभार,.... प्रयास जारी रहेगा... आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by Shishir Dwivedi on January 7, 2015 at 10:44pm
बहुत अच्छी कहानी है। और लिखते रहिये पढ़ने में अच्छा लगा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2015 at 7:53pm

आदरणीय  harivallabh sharma सर आपकी कथा के मर्म पर सार्थक टिप्पणी से बहुत उत्साह मिला  है  इस स्नेह और आशीर्वाद के लिए हार्दिक धन्यवाद ... आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2015 at 7:51pm

आदरणीय  Hari Prakash Dubey जी आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु पुनः हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2015 at 7:50pm

आदरणीय  Er. Ganesh Jee "Bagi" सर इस लघुकथा पर आपके मार्गदर्शन की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा था... इस विधा में प्रयास की दिशा हेतु आपका मार्गदर्शन बहुत आवश्यक था ... आपकी इस प्रयास पर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से बहुत बल मिला है .. आपका स्नेह पाकर अभिभूत हूँ .... हार्दिक आभार .... नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2015 at 7:46pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  सर आपका सरप्राइज आशीर्वाद मिल गया तो रचनाकर्म सार्थक हुआ .... आपकी अनुभवी लेखनी और शब्द चयन को प्रणाम ... आगे लघुकथा विधा में और अधिक प्रयास करूँगा ...  आपका मार्गदर्शन सदैव बहुत कुछ सिखाता है ... ऐसे ही स्नेह बनाए रखे सर ... नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2015 at 7:42pm

आदरणीय  जितेन्द्र पस्टारिया  जी आपको यह प्रयास पसंद आया लिखना सार्थक हुआ .. बहुत बहुत आभार हार्दिक धन्यवाद 

Comment by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 7:36pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, कहानी में मानव मन के उभय पक्षों को आपने इस कथा में रेखांकित किया है. दोनों ही पक्ष सबल रहे..एक ड्राईवर के मनोभाव का भी सुन्दर चित्रण है..बधाई एक सफल कथा हेतु.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय मुसाफिर जी नमस्कार । भावपूर्ण ग़ज़ल हेतु बधाई। इस्लाह भी गुणीजनों की ख़ूब हुई है। "
2 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा यादव जी नमस्कार । ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
5 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। तेरे चेहरे पे शर्म सा क्या…"
23 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Prem Chand Gupta जी आदाब  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। कृपया नुक़्तों का विशेष ध्यान रखें…"
30 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"कू-ब-कू है ख़बर, हुआ क्या हैपर ये अख़बार ने लिखा क्या है । 1 जो परिंदे क़फ़स में जीते हैंउनको मालूम है…"
33 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी आदाब, "मौन है बीच में हम दोनों के"... मिसरा बह्र में नहीं…"
50 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Chetan Prakash जी आदाब। ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिए बधाई स्वीकार करें। बेवफ़ाई ये मसअला…"
57 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय अमित…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 - 1212 - 22/112 देखता हूँ कि अब नया क्या है  सोचता हूँ कि मुद्द्'आ क्या…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाइये।…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदाब, मुसाफ़िर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई खूँ सने हाथ सोच त्यों बर्बर सभ्य मानव में फिर नया क्या है।३।…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय 'अमित' जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल के साथ मुशायरा का आग़ाज़ करने के लिए दाद के साथ…"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service