For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अमां जफर बेटा, अपने अब्बू से न दुआ न सलाम! ये अल सुबह कहाँ भागे जा रहे हो?" खालिदा बेगम ने घर से बाहर जाते बेटे को बरामदे से ही आवाज लगायी।
"अरे अम्मीजान, मैं पहले ही 'जिम' के लिये लेट हो गया हूँ और आप......., खैर! आदाब अब्बा हुजूर।" बरामदे में ही बैठे अनवर मियां को दूर से ही हाथ हिलाकर जफर ने आदाब किया और देखते ही देखते ही नजरो से गायब हो गया।
उसकी हरकत पर खालिदा बेगम को तो हॅसी आ गयी अलबत्ता अनवर मियां पान की ग्लोरी मुँह में रखते रखते भुनभुना गये:

"लाहोल विला कुव्वत! ये आजकल के बच्चे। अरे पड़ोस के कामिल मियां के साहबजादे को देखो, कितना जहीन है, जब भी आता है घर भर में सबको तहजीब से सलाम करके जाता है। और एक हमारा........।"
"बस रहने दीजिये मियां।" अनायास ही खालिदा बेगम संजींदा हो गयी और बात को बीच में ही काट दिया। "ना चाहिये हमें अपने जफर में उसके जैसी तहजीब। कभी बहू बेटियो से तहजीबी सलाम करते बक्त उसकी आँखो में चमकती बेशर्मी पर भी गौर फरमाया है आपने।"
अचानक ही अनवर मियां को मुँह में रखी पान की ग्लोरी कसैली लगने लगी थी।

.
'विरेन्दर वीर मेहता'

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2015 at 8:55pm

आ० वीरेन्द्र वीर मेहता जी 

मुखौटों में छुपी बदनीयती...को बाखूबी प्रस्तुत किया है. शालीनता व सभ्य आचरण नज़रों से झलकता है..बहुत सुन्दर लघुकथा प्रस्तुत हुई है.

हार्दिक बधाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 23, 2015 at 8:03pm

अच्छी प्रस्तुति !

Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 8:01pm

एक अच्छी और हृदयस्पर्शी लघुकथा पर ,आपको बधाई आ VIRENDER VEER MEHTA  जी |दिखाऊ तहजीब पर अदृस्य तहजीब भारी  है| 

Comment by kanta roy on July 22, 2015 at 12:26pm
वाह !!! क्या खूब पान की गिल्लौरी का स्वाद बदला है आपने एकदम से । बहुत ही शानदार लघुकथा हुई है तहजीबों की तहजीब में । बधाई आपको आदरणीय वीर मेहता जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 21, 2015 at 11:25pm

आदरणीय वीरेंदर मेहता जी, 

बढ़िया लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई.

आज आप डबल ट्रिपल आभार व्यक्त कर रहे है सोचा मैं भी गंगा नहा लूं. आपने आ. ओमप्रकाश जी का 4 बार, आ. रवि शुक्ल जी का 2 बार , आ. धमेंद्र जी का 2 बार और आदरणीय विनय जी का 2 बार आभार व्यक्त किया है. थोड़ा श्रम बचाइये आपको अन्य रचनाकारों के ब्लोग्स पर भी कमेंट्स करने है, जो बहुत दिनों से आप व्यस्तता के कारण नहीं कर पाए है. सादर 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 21, 2015 at 11:09pm
आदरणीय विनय कुमार भाई जी कथा पर हमेशा आपकी मौजूदगी मेरे लिये उत्साहवर्धक रही है । आपके सहयोग और साथ के लिये ह्रदय तल से आपका आभार।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2015 at 11:09pm

ऐसी ही दिखावे के आचरण को देसी ढंग में ’दिखाऊ साव का ढोल’ कहते हैं. किसी के प्रति आदर श्रद्धा स्नेह आँखों में ही होती है.  
एक अच्छी लघुकथा केलिए हार्दिक बधाइयाँ.

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 21, 2015 at 11:03pm
आदरणीय धर्मेन्दर कुमार जी और प्रदीप कुमार जी आपके कथा पर अपना समय देने और परशंसा के शब्द कह कर मेरा उत्साह बढाने के लिये आपका तहे दिल से आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 21, 2015 at 11:03pm
आदरणीय धर्मेन्दर कुमार जी और प्रदीप कुमार जी आपके कथा पर अपना समय देने और परशंसा के शब्द कह कर मेरा उत्साह बढाने के लिये आपका तहे दिल से आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 21, 2015 at 10:56pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी
आपके कथा पर हौसला देते शब्दो के लिये दिल से शुक्रीया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service