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"बाऊजी ! बच्चों के इम्तहान शुरू हो रहे हैं ।आपकी बहू चाहती थी , बेहतर होता अगर आप कुछ रोज़ भाईसाहब के यहाँ हो आते ।"
" पर बेटा ! अभी तो समय पूर्ण होने में दो माह बाकी हैं ।"
" वो तो ठीक है , पर आप तो जानते हैं , घर में एक ही अतिरिक्त कमरा है , वो भी ......।"
" कबाड़ी वाला ....कबाड़ी ....। बाऊजी ! कुछ कबाड़ है क्या ? "
"हाँ है तो.... शायद तुम्हारे बाजार में भी इसका कोई मोल न होगा...।"
मौलिक व अप्रकाशित ।

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2015 at 8:33pm

" कबाड़ी वाला ....कबाड़ी ....। बाऊजी ! कुछ कबाड़ है क्या ? "
"हाँ है तो.... शायद तुम्हारे बाजार में भी इसका कोई मोल न होगा...।"
वाह वाह वाह !

वैसे यह विषय अब क्लिशे हो चुका है. लेकिन चूँकि संवेदना जब गठन पाती है तो शब्द संवाद करते हैं.
शुभेच्छाएँ

Comment by shashi bansal goyal on July 4, 2015 at 5:09pm
आद0 गणेश जी हार्दिक धन्यवाद व आभार । आपकी बहूमूल्य प्रतिक्रिया व् सराहना पाकर बहुत प्रसन्नता हुई । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on July 4, 2015 at 5:07pm
आद0 ओमप्रकाश जी हार्दिक धन्यवाद व आभार ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 4:28pm

आदरणीया शशी बंसल जी, बहुत मार्मिकता से कसी हुई लघुकथा प्रस्तुत हुई है बहुत बहुत बधाई.

Comment by Omprakash Kshatriya on June 26, 2015 at 8:55am

आदरणीया   shashi bansal जी वास्तव में आप की लघुकथा  अच्छी बन पड़ी है . बधाई आप को .

Comment by shashi bansal goyal on June 18, 2015 at 4:08pm
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आद0 शुभ्रांशु पाण्डेय जी । कृतार्थ होऊँगी यदि आप संशोधन बताएँ ।मुझे सटीक और उचित शब्द नहीं सूझ रहे हैं । सादर ।
Comment by shashi bansal goyal on June 18, 2015 at 4:05pm
हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आद0 नोहर सिंह जी ।
Comment by Shubhranshu Pandey on June 18, 2015 at 1:20pm

आदरणीया शशि जी .

सुन्दर कथा. कमरे और कबाड़ के कहने के तरीके पर एक बार ध्यान देंगी. 

सादर.

Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on June 17, 2015 at 10:54pm
बहुत खूब
Comment by shashi bansal goyal on June 15, 2015 at 7:15am
हार्दिक आभार आद0 अर्चना त्रिपाठी जी ।

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