चुने कंट............शक्ति छंद
दिये से दिये को जलाते चलें।
बढी आग दिल की बुझाते चलें।।
रहे प्रेम का जोश-जज्बा सदा।
चुने कंट सत्यम गहें सर्वदा।।1
नहीं दीन कोई न मजबूर हों।
सभी शाह मन के बड़े शूर हों।।
न कामी न मत्सर सहज प्यार हो।
बहन-भ्रात जैसा मिलन सार हो।।2
यहां सिंधु भव का बड़ा क्रूर है।
लिए तेज सूरज मगर सूर है।।
यहाँ तम मिटा कर खड़ा नूर जो।
बुलाता उन्हे पास, हैं दूर जो।।3
भिगोते रहे अश्रु मन-नैन भी।
मगर दु:ख में सुख मिले चैन भी।।
अगर प्यार-ममता लुटे राह में।
दया-सिंधु भव पार कर दाह में।।4
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 गोपाल भाई जी, रचना पर उपस्थिति हेतु, आपका बहुत-बहुत आभार.
satyam jee
behtareen prayaas.
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