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आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,

सादर अभिवादन.

 

ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 43 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ

21 नवम्बर 2014 से 22 नवम्बर 2014,  दिन शुक्रवार  से दिन शनिवार

 

इस बार के आयोजन के लिए जिस छन्द का चयन किया गया है, वह है –  हरिगीतिका छन्द

 

एक बार में  अधिक-से-अधिक तीन हरिगीतिका छन्द प्रस्तुत किये जा सकते है.

 

ऐसा न होने की दशा में प्रतिभागियों की प्रविष्टियाँ ओबीओ प्रबंधन द्वारा हटा दी जायेंगीं.

 

 

हरिगीतिका छन्द के आधारभूत नियमों को जानने हेतु यहीं क्लिक करें.

 

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 21 नवम्बर 2014 से 22 नवम्बर 2014 यानि दो दिनों के लिए रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

विशेष :

यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

[प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है] 

अति आवश्यक सूचना :

  • आयोजन की अवधि के दौरान सदस्यगण अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक के हिसाब से पोस्ट कर सकेंगे. ध्यान रहे प्रति दिन एक प्रविष्टि, न कि एक ही दिन में दो प्रविष्टियाँ.
  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध करें.  आयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  • आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  • इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  • रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  • रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

 

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

क्या बात है क्या बात है क्या बात है दीदी बड़ी |
भावार्थ है भावार्थ है शब्दार्थ की अनुपम लड़ी |
यदि बाल मन को पढ़ सके समुचित तरीके से यहाँ |
खुशहाल हो जाए मनुज खुशहाल हो जाये जहाँ-

आ० रविकर भाई आपकी छान्दसिक प्रतिक्रियाओं ने आयोजन में समां बाँध रखा है क्या बात है 

दिल से बहुत- बहुत आभारी हूँ 

आदरणीया राजेशजी

इन बारह पंक्तियों में एक अनाथ असहाय बालक  की भावनाओं को बड़े ही मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है । मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

प्राश का अर्थ आहार सुना था लेकिन आश ?  ....... शायद यह शब्द कोष में भी न मिले .......... वैसे आपकी रचनाओं में  तुकांतता 

अद्भुत होती है। 

सादर  

आ० अखिलेश जी,आपका अतिशय आभार इस उत्साहित करती प्रतिक्रिया हेतु|आपका कहना  सही है प्राश भी भोजन के लिए होता है किन्तु आश का अर्थ भी भोजन ,मील के लिए होता है |सादर   

दूसरी प्रस्तुति प्रथम प्रस्तुति को आगे बढ़ाते हुई लगी, सुन्दर चित्रांकन हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीया राजेश जी।

आपकी दूसरी प्रस्तुति की जितनी प्रशंसा की जाये कम होगी, आदरणीया राजेश कुमारीजी.
बहुत मार्मिक पंक्तियाँ बन पड़ी हैं. किन्तु यह पहली प्रस्तुति का एक्सटेंशन अधिक हो गयी है. अतः इस चित्र से इसकी तारतम्यता नहीं बन पा रही है.

एक बात अवश्य जाने कि हरिगीतिका छन्द के पदों का का समापन रगण (राजभा, २१२, ऽ।ऽ, गुरु-लघु-गुरु) से करें. पदान्त के अलावे गुरु को शब्द-कल के अनुसार दो लघु लिया जा सकता है. इस तथ्य पर मुझे आपको कुछ नहीं कहना, आप स्वयं जानकार हैं.  
सादर

सभी 

      आदरणीय विद्वज बंधुओं का मार्गदर्शन एवं स्नेह हेतु  तहे दिल से आभार |जहाँ तक नियम से पढ़ कर सीखने का प्रश्न है मैं यह मानता हूँ की नियम आप को सही-गलत का विभेद समझाते हैं परंतु जब तक आप उस मार्ग पे नहीं चलते आप नियमों को अपने व्यवहार में आत्मसात नहीं कर सकते यही बात रचना के नियम पर भी लागू होती है |अभी ये मेरा पहला कदम था किसी नए बच्चे की तरह ,शायद लगातार  अभ्यास करते हुए ही इस विधा का अभ्यस्त हो सकूंगा |मार्गदर्शन एवं गुरु नियमों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं ,यकीन है मेरे प्रयासों पर इस मंच के दिग्गजों से सुझाव मिलता रहेगा |

सविनय 

आप सबका अनुज 

भाई सोमेशजी, आप अपनी प्रस्तुति की प्रतिक्रियाओं को पढ़ने के साथ-साथ अन्याय प्रस्तुतियों को भी पढ़े तथा उन पर अपनी प्रतिक्रियाएँ दें.
इसके साथ एक और सुझाव है, आप अन्यान्य प्रस्तुतियों पर सुधीजनों की प्रतिक्रियाओं को भी पढ़ें. बहुत कुछ स्पष्ट होगा.
 

द्वितीय प्रस्तुति 

मौलिक / अप्रकाशित 

आई गई आई नई आई-गई खुद झेल ले । 

खाना मिले या ना मिले, पर रोज पापड़ बेल ले । 

रेखा खिंची आँखे मिची अब काट के जंजाल तू ॥ 

जूते बड़े बाहर पड़े पैरों को उनमे डाल तू । 

 

आई=माँ  आई-गई = विपत्ति 

आदरणीय रविकरजी

इन चार  पंक्तियों में एक  असहाय बालक को उचित सलाह दे दी।  मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

रचनाओं  में तुकांतता भी कमाल के हैं 

  

आ.रविकर जी, अति मोहक छंद बद्ध  रचना के लिए हृदय तल से बधाई स्वीकार करें

सादर, 

आपकी रचनाओं में एक फ्लेवर होता है आदरणीय रविकर जी, बधाई स्वीकार करें।

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