For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहेलिया और जंगल में आग .. :नीरज

जब जब जागी उम्मीदें ,

अरमानों ने पसारे पंख.

देखा बहेलियों का झुंड, 

आसपास ही मंडराते हुए,

समेट  लिया खुद को

झुरमुटों के पीछे.

अँधेरा ही भाग्य बना रहा.

हमारे ही लोग,

हमारे जैसे शक्लों वाले,

हमारे ही जैसे विश्वास वाले,

करते रहे बहेलियों का गुण गान.

उन्हें बताते रहे हमारी कमजोरियों के बारे में

बहेलिये भी हराए जा सकते हैं.

कभी सोचा ही नहीं .

उनकी शक्ति प्रतीत होती थी अमोघ.

जंगल में लगी आग में देखा

बहेलिये को भयाक्रांत

जान बचाकर भागते हुए

बहेलिया भी डरता है,

वह हराया जा सकता है.. 

उठा लिया एक लुआठी.

सबने कहा यह गलत है..

बहेलिये को डराना है अनैतिक.

हम हैं इतने ज्यादा , बहेलिये इतने कम

पर धीरे धीरे जमा होने लगे सभी

बन गयी एक लम्बी श्रृंखला लुआठियों की

भयमुक्त जीना

अपनी संततियों के सुखद भविष्य देखना

अच्छा लगता है .   

अच्छे दिन आ गए.

 

….

नीरज कुमार नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 866

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on June 3, 2014 at 8:36pm

आदरणीय सौरभ जी आपकी इस विस्तार पूर्वक की गयी टिप्पणी एवं आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक रूप से आभारी हूँ. आपकी टिपण्णी ने न केवल प्रोत्साहित किया है बल्कि मन प्रफुल्लित भी किया है .. कृपया स्नेह बनाये रखें एवं उचित मार्गदर्शन भी करते रहें .. सादर ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2014 at 11:50am

भाई नीरज नीर जी,
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. अबतक जिस तरह से आदिमजनों की भावनाओं एवं आवश्यकताओं को किनारे कर उनके तथा उनके क्षेत्रों के विकास की अवधारणाओं और नियमावलिओं को लागू किया गया है, उसीकी परिणति है कि वन-प्रदेश धधक उठा है. उसकी तपन और अगन का कई समूहों-संगठनों ने अपने जुगुप्साकारी स्वार्थ के तहत उपयोग किया है, इन्हें भुनाया है. आज यह निर्विवाद है, कि वनवासियों की जलन पर मरहम न लगा कर मिर्ची-नमक रगड़ा गया है. इस कर्म में दोनों तरह के लोग लिप्त हैं. वे भी जो उनकी ओर खड़े दिख रहे हैं और वे भी जो उन समूहों-संगठनों के विरुद्ध खड़े हैं. लेकिन हर बार छला गया वनवासी ही है. इस ज़िद और स्वार्थ को नाम चाहे जो दिया जाय, वस्तुतः है यह शुद्ध समाजद्रोही कार्य, जहाँ समझ की नहीं, अनर्थकारी हठ के वशीभूत आगे बढ़्ते चले जाने का आग्रह होता है. इस बददिमाग सोच ने हिंसा का जो ताण्डव शुरु किया है उसका अंत आजके प्रयासों में कत्तई नहीं दिखता. लेकिन जिस मुलायम ढंग से कविता में आजकी अति प्रसिद्ध राजनैतिक पंच-लाइन का उपयोग किया गया है वह आपकी कविमन सोच के प्रखर रूप को सामने लाता है.

आपकी इस कविता के माध्यम से मैं आपको रचनाकर्म और संप्रेषण प्रक्रिया में एक सोपान और चढ़ा/ आगे बढ़ा देख रहा हूँ. इस कविता ने जहाँ आदिम जन की एक प्रासंगिक सोच को आम किया है, जैसा कि मैंने ऊपर कहा है, राजनैतिक पंच-लाइन को कुशलता से प्रयुक्त किया है जो कि वन-प्रदेश में तारी मनोदशा की अभी तक कत्तई अभिव्यक्ति नहीं मानी जाती थी.

आपकी इस सुन्दर अभिव्यक्ति को मैं हृदय से अनुमोदित कर रहा हूँ, भाईजी. इस कविता के होने पर हार्दिक शुभकामनाएँ और अतिशय बधाइयाँ.

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:47am

आदरणीया  विन्दु जी.. सादर धन्यवाद..

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:46am

आदरणीया राजेश कुमारी जी इस प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:46am

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:45am

आदरणीय बृजेश  नीरज जी आपको रचना अच्छी लगी आपका बहुत शुक्रिया ...

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:44am

आदरणीया मीना पाठक जी आपका धन्यवाद..

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:43am

आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी आपका हार्दिक धयवाद..

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:42am

डॉ. आशुतोष मिश्र जी आपका ह्रदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ.. आपकी टिप्पणी प्रोत्साहित करने वाली है..

Comment by Neeraj Neer on June 1, 2014 at 11:40am

आदरणीय भ्रमर जी आपका आभार..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service