For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"क्यों..भाई, क्या हुआ ? अतिवृष्टि से चौपट हुयी फसल का, मुआवजा दे रही है न राज्य-सरकार ?" रामभरोस ने बड़ी आशाभरी आवाज से पूछा.

"काकाजी..!! दे तो रही थी, पर विपक्ष के नेताओं ने, अगले महीने चुनाव आता देख, चुनाव-आयोग को शिकायत कर स्टे लगवा दिया.. अब देखो क्या होता है ", नितिन ने बड़ी निराशा से कहा.

"अरे बेटा ! सोच रहे थे, कुछ पैसे मिल जाते तो अगली फसल के लिए खाद पानी का जुगाड़ हो जाता, और दीवाली भी मना लेते...", रामभरोस ने कराहते हुए स्वर में कहा..

       जितेन्द्र ' गीत '
  ( मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 1287

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 13, 2013 at 9:03am

आदरणीय लक्ष्मण जी, हर इन्सान अपने मताधिकार के उपयोग से यह चाहता है की ऐसी सरकार बने जो सभी जन की भलाई का काम करे,  देश,प्रदेश, शहर, और गाँव का विकास करे, न कि स्वयं का, हर धर्म के लोगो को समानता से देखा जावे, परन्तु यहाँ तो जिद्दी बच्चों की तरह झगडा होता है, यह खिलौना तेरा नही तो मेरा भी नहीं,

आपका बहुत बहुत आभार, अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 13, 2013 at 8:52am

यह आपका कहना शत-प्रतिशत सही है, इस स्वार्थ की राजनीति ने किसान ही नही, देश के बेरोजगार, महिलाओं, अलग-अलग धर्म के लोगों, मजदूरों, सरकारी कर्मचारियों सभी को अपनी चपेट में ले रखा है, आप जैसे लघुकथाकार की प्रतिक्रिया पाकर, मेरी रचना धन्य हो गई आदरणीय दीपक जी, अपना स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Dipak Mashal on October 21, 2013 at 4:18pm


किसान-मजदूर हो चाहे कोई और मेहनतकश इस राजनीति की लपटों से सभी झुलसाए जाते हैं। अपने भविष्य के भले के लिए ये सौ-सौ पेटवाले एक पेटवालों की वर्तमान की रोटी भी छीन रहे हैं। 

लघुकथा इस दशा को अच्छे से दर्शाती है।  बधाई जितेन्द्र भाई 
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 10:08pm

आपने रचना व् किसानों के मर्म को छुआ,आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 9:56pm

आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शुशील जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on October 19, 2013 at 8:05pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, किसानों के हालत और हालात को खीच कर आपने सामने रख दिया है. एक एक खुशी पाने के लिये किसानों को तरसना पड़ रहा है. एक मार्मिक कथा. सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 19, 2013 at 12:25pm

जन हित में लिए गए फैसले पर राजनीति से न जनता का भला न राज नेताओं को | अब किसान विपक्ष को जिसने सहायता 

पर रोक लगवा दी, वोट क्यों देंगे | थोथी विरोध की राजनीति से किसी का भी भला नहीं होता | सुन्दर सन्देश देती लघु कथा के 

लिए हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 11:31am

जी हाँ , आदरणीया राजेश जी, आप बिलकुल सही कह रहीं है, नेताओं को किसी की परेशानी से कोई मतलब न्हीं, उन्हें सिर्फ अपनी रोटी सेंकने से मतलब है, वो कैसे भी सिंकनी चाहिए..बस और कुछ न्हीं !

आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 11:15am

आपका कहना एकदम सही है आदरणीय गणेश जी, दल के नेता पक्ष में हो या विपक्ष में, मुआवजा की राशी का भार तो किसी न किसी प्रकार से जनता पर ही आना है, उस राशी को सौंप कर हालाँकि कोई अहसान तो न्हीं कर रहे है, पक्षीय दल ,उसमें से कुछ खर्चा पानी भी निकाल ही लेंगे.,. नुकसान तो जनता की होना है, हमारे यहाँ, एक कहावत है की 'सांड से सांड लड़ा,बागुढ़ का घान किया'

आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2013 at 11:02am

आपने सच कहा आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी, किसान पृकृति की मार से परेशान है, उसका परिवार तो अपनी जगह, वो देश की रोटी की भी चिंता में रहता है, उपर से गंदी राजनीति का कहर...परेशानी को ओर बड़ा देती है,

अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service