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कविता -------सुबह सुहानी लगती है

छाने लगी सूरज की लाली ,
गाने लगी कोयलिया काली ,
छूमंतर होने लगा अन्धकार ,
मीठी निंद्रा से जागा संसार !
मंद हवा के शीतल झोंके ,
तरोताजा कर जाते है ,
और पत्तो पे बिखरे ओस के मोती ,
गायब कहीं हो जाते है !
सूरज की पहली किरण से ,
अंग अंग मस्त हो जाता है ,
और निंद्रा पूरी कर रात की ,
 आलस कहीं खो जाता है ,
सुबह के सुंदर नज़ारे बहुत सुहाने लगते है ,
कली कली इठलाती है ,
पौधों के हर एक डाल पे ,
फूल सुहाने खिलते है !
भोंरे की मीठी गुंजन से ,
उपवन इठलाने लगता है ,
मुर्गे की एक बांग से ,
जग उठ जाने लगता है !
सूरज की लाल लालिमा ,
जीवन को रंगीन बनाती है ,
अन्धकार दूर कर ये सुबह ,
उम्मीदों के चिराग जलाती है !
प्रात काल की ये बेला हर एक के मन को भाती है ,
छोड़ के पीछे ना उम्मीदी को नया विश्वास जगाती है ,
जागो , उठो और आगे बढ़ो मीठे सपनो में मत खोओं
मधुर  भोर का आनंद ले लो मेरे प्यारे अब मत सोओं !
-----------------------रचना -----------------------डॉ. अनुराग सैनी --------------------------------------
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:30pm

वाह आदरणीय अनुराग जी बहुत खूबसूरत रचना, सुबह का खूबसूरत चित्रण, इस रचना के लिये बधाई स्वीकार करें 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 8:41pm

सभी विद्य जानो का हार्दिक आभार !

Comment by बृजेश नीरज on October 5, 2013 at 7:51pm

अच्छे भाव हैं! आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

आपसे निवेदन है कि आप कविता के शिल्प पर भी ध्यान दीजिये. गद्यात्मकता से बचने का प्रयास करें.

सादर!

Comment by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 11:42pm

वाह !! आदरणीय बहुत सुंदर रचना बहुत बधाई आपको । 

Comment by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 9:46pm

बेहद सुंदर रचना है आदरणीय अनुराग जी.... यद्दपि आजकल की भोर में भी वह पहले सी ताज़गी नहीं है.... विशेषकर शहरों में तो बिल्कुल नहीं.... लेकिन यदि गाँवों की ओर रुख़ करें तो ऐसी ही होती है सुबह..... सुबह की नैसर्गिक छटा का सुंदर वर्णन किया है आपने... बधाई हो..

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