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कविता :- माफ करना स्वस्तिका

कविता :- हमें माफ करना स्वस्तिका

हमें माफ करना स्वस्तिका

हमने भुला दी है इंसान होने की संवेदना

अब हमें तुम्हारे बलिदान सी घटनाएं नहीं हिलाती

सत्ता और संसार सभी चलते रहते अपनी राह

कोई नहीं ग्रस्त होता तुम्हारी हत्या के अपराध बोध से

कौन जान सकता है तुम्हारी आत्मा की पीड़ा

कि तुम् नहीं देख सकी दूसरे जन्मदिन के गुब्बारे

दोस्तों संग नहीं काट-बाट सकी केक

और समय से पहले ही बुझ गयी तुम्हारे जीवन की मोमबत्ती

धरी की धरी रह गयी माता पिता की तैयारियां |

हमें माफ करना स्वास्तिका

कि गंगा तट की सीढियां गवाह बनी इस अमानवीय कृत्य की

तुम नहीं देख सकी गंगा आरती की भव्यता

और अब सियासतदां देख रहे हैं अवशेष

शैतानी सभ्यता के

कर रहे जुबानी जमा खर्च

तुमपर और तुम्हारे जीवन के अनजीये दिनों पर

अब तो तुम्हे भूल गए हैं खबरिया चैनेल भी

तुम जिनकी ब्रेकिंग न्यूज बन बढ़ा गयी थी टी.आर.पी.

अखबार के वे पन्ने भी पहुँच गए परचून कि दूकान

तुम जिनपर छाई थी |

हमें माफ करना स्वस्तिका

कि हम भूल गए हैं कि हम इंसान बन पैदा हुए

कहने को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना |

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on December 21, 2010 at 2:46pm

लता जी और , मदन जी आपके कमेन्ट इस रचना को सार्थक बनाते हैं मैं आभारी हूँ |

Comment by Lata R.Ojha on December 21, 2010 at 1:56pm

अब तो तुम्हे भूल गए हैं खबरिया चैनेल भी

तुम जिनकी ब्रेकिंग न्यूज बन बढ़ा गयी थी टी.आर.पी.

अखबार के वे पन्ने भी पहुँच गए परचून कि दूकान

तुम जिनपर छाई थी |

आज के दौर का ओछा सच है ये..मानवता तो सब कब के भूल गये हैं अब तो घड़ियाली आँसू भी सूखते जा रहे..और
"कहने को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना'
अरुण जी उस दुखद और शर्मनाक घटना को आपने बेहद मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया है.
Comment by madan kumar tiwary on December 20, 2010 at 6:48pm

it is heart touching. a shame for those who kill innocent.

Comment by Abhinav Arun on December 20, 2010 at 3:21pm

dhanyavaad anupama jee !!!

Comment by Anupama on December 20, 2010 at 2:31pm

marmsparshi rachna!!!

Comment by Abhinav Arun on December 20, 2010 at 2:12pm

dr sanjay sir thanks a lot !!! your appreciation will courage me to deliver best !!!

Comment by Dr. Sanjay dani on December 19, 2010 at 11:58am

इंसानी ज़ेहन को कुरेदती मर्म स्पर्शी  अभिव्यक्ति,

Comment by Abhinav Arun on December 17, 2010 at 3:16pm

aashish jee dhanyavaad |laut aaye aap aap kee kamee khal rahee thee .

Comment by आशीष यादव on December 17, 2010 at 10:18am
behad marm sparshi kawita hai sir, raakesh sir ne sahi kaha ki bhitar tk chot karti hai.
Comment by Abhinav Arun on December 14, 2010 at 8:46am

आभार भाई राकेश जी |साहित्य समय सापेक्ष हो तभी सार्थक है |

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