For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक बंजर व्योम तो हम पर तना है !

अपरिचय, संवेदना है, भावना है ,

उसे क्या जो पुष्प से पत्थर बना है !

मिले उनको हर्ष के बादल घनेरे ,
एक बंजर-व्योम तो हम पर तना है !

चित्र है उत्कीर्ण कोई चित्त पर ,
ठहर जाती जहां जाकर कल्पना है !

सूर्य की ये रश्मियाँ बंधक बनीं हैं 
एक अंधी कोठरी मे ठहरना है !

रास्ते अब स्वयं ही थकने लगे हैं 
पूछता गंतव्य मन क्यों अनमना है ?

_______________________प्रो. विश्वम्भर शुक्ल 

 (मौलिक और अप्रकाशित )


Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2013 at 10:37pm

इसी नाम से छंद है गीतिका. आप जानते ही हैं आदरणीय. खैर ..

इस मंच पर पहले भी कई-कई बार इन विन्दुओं पर यानि गीतिका को लेकर परिचर्चा हो चुकी है. और सार्थक उत्तर कभी नहीं मिल पाया है.

आप मेरे कहे का बुरा न मानें, आदरणीय तो कहूँ.  कि, मात्रिकता और वर्णिक स्वरूप के हिसाब से रचना विधान भी सधना चाहिये. फिर तो इसे कविता ही रहने दें जो शब्द-संयोजन के हिसाब से चलती है और गेयता का अत्यंत संतुष्टिदायक निर्वहन करती है. हम फिर ग़ज़ल के आवरण को क्यों ढोयें ? किसी बड़े नाम ने कोई प्रयोग किया तो वह प्रयोग अनुमन्य ही हो ऐसा हर बार नहीं होता. वह भी तब जब उस प्रयोग के कई विधान सम्बन्धी तथ्य प्रश्नवाचक घेरे में हों.

ग़ज़ल के आवरण से हटते ही सारे भ्रम दूर हो जायेंगे. उर्दू अदब मे भी कई-कई नामचीन ग़ज़लकार बेबह्र ग़ज़लें कहते हैं लोग उन्हें जानते भी हैं.  लेकिन हिन्दी में ऐसी परिपाटी नये रचनाकारों को भ्रम में डालती है और कहने वालों को हिन्दी ग़ज़लकारों के विरुद्ध मौका. 

दूसरे, जब हम छंद शास्त्र और उसके दुरूह विधान साध सकते हैं तो फिर हिन्दी वर्णमाला के आलोक में ग़ज़ल क्यों नहीं ? क्यों अनावश्यक बैसाखी का सहारा लिया जाय ? ग़ज़ल से सम्बन्धित आलेख और रिपोर्ट आप भी अवश्य पढते होंगे.

मेरा इतना ही निवेदन है.

सादर

Comment by रविकर on July 2, 2013 at 7:58pm

विमर्श से सौ प्रतिशत सहमत-
सुन्दर गीतिका-

Comment by रविकर on July 2, 2013 at 7:56pm

बना अनमना थका सा, हुआ भावना सून |
वाह वाह क्या बात है, पत्थर मन मजमून ||

आभार आदरणीय डाक्टर साहब ||
बधाईयाँ इस निर्दोष प्रस्तुति पर-

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:52pm

बंधुवर  Ram Shiromani Pathak जी आपका ह्रदय से आभार !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:50pm

अमन कुमार जी सादर सस्नेह आभार आपका 

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:50pm

गीतिका 'वेदिका'जी आपकी सराहना की टिप्पणी का सस्नेह आभारी हूँ ,वंदन !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:49pm

मित्र अरुण शर्मा 'अनंत' जी से क्षमा ,आभार व्यक्त करते समय पूरा नाम टंकित होने से रह गया 

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:47pm

मित्रवर अरुण कुमार 'अनंत' जी आपकी स्नेहिल दृष्टि का आभार !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:44pm

आपका हार्दिक आभार सप्रेम वीनस केसरी जी !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:43pm

आभार मित्र Jitendra Pastariya JII !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service