बाबा आए, बाबा आए
भरे हुए दो झोले लाए झोले में सपनों की बातें तारों भरी सुहानी रातें देख उन्हें राजू भी दौड़ा कर्मकीट सा एक निगोड़ा बाबा को 'पहुंचा' संत जानकर उन्हें पूज्य भगवंत मानकर चरण पकड़कर लगा कलपने
सूनी आंखें लगी बरसने बोला 'बाबा हाथ देख दो' कर्म-गति को तनिक हेर दो परम रूप बाबा मुसकाए सिर पर उसके हाथ फिराए श्वांस छोड़ फिर गहरी बोले राज हाथ के पल में खोले 'बच्चा तू तो नाम करेगा पोखराज पहन ले, काम करेगा सारे धन्ना सेठ पहनते बड़े सियासी मेठ पहनते ज्ञान धाम श्रीमंत पहनता छोटा-बड़ा हर संत पहनता गांव का ठेकेदार पहनता एक नहीं दो-चार पहनता' अश्रूपूर्ण दो नयन पोंछकर बोला राजू तनिक क्षोभकर 'बाबा काहे जिया जलाते जले बदन में आग लगाते मेरे दुर्दिन बड़े भले हैं बड़े भाग्य से मुझे मिले हैं मैं निर्झर का बहता पानी मुझे यही कहती थी नानी इस नग से मैं नाग बनूंगा अपने कुल का दाग बनूंगा यह पोखराज वो गहना है हर दलदल ने जिसको पहना है' देकर उसको अपना इकतारा बाबा ने अग-जग सब हारा उसी धरा पर प्राण त्यागकर चले गए वो परम धाम पर जाते-जाते बोले इतना 'पोखराज नहीं कभी पहनना तूने सच्चा दर्पण देखा श्यामशरण का नर्तन देखा बेटा मेरा भाग्य बली है अप्पदीप तू महाबली है' "(मौलिक एवं अप्रकाशित) |
Comment
कल्पना की सुन्दर उड़ान कर रची रचना सन्देश परक है, हार्दिक बधाई भाई श्री राजेश कुमार झा जी
sundar....
बहोत ही बढ़िया भाई जी ............
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