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राज की बात हम तलक ही रहे
ये मुलाक़ात हम तलक ही रहे ।

कुछ सवालात पूछ बैठे हम
कुछ सवालात हम तलक ही रहे ।

उनके इल्ज़ाम सब थे झूठे मगर
मेरे इस्बात हम तलक ही रहे ।

डर है तुझको बहा न ले जाये
ऐसी बरसात हम तलक ही रहे ।

इन सितारों को बाँट ले दुनिया
चाँदनी रात हम तलक ही रहे ।

(इस्बात - प्रमाण/सुबूत)

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Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 19, 2013 at 11:30pm

शुक्रिया आ. Ashok Kumar Raktale  जी |

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 19, 2013 at 11:30pm

शुक्रिया आ. Dr Mohan lal जी |

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 11:11pm

वाह! बढिया गजल भाई आशीष जी बधाई स्वीकारें.

Comment by मोहन बेगोवाल on February 19, 2013 at 10:32pm

उनके इल्ज़ाम सब थे झूठे मगर 
मेरे इस्बात हम तलक ही रहे  आपने  बहुत अच्छे अशरार आप जी ने कहे

 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 19, 2013 at 8:25pm
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 19, 2013 at 8:23pm

आ. राजेश कुमारी जी, आ. मीना पाठक जी बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by Arun Sri on February 19, 2013 at 8:15pm

इन सितारों को बाँट ले दुनिया
चाँदनी रात हम तलक ही रहे ।.......... वाह भई वाह ! मज़ा आ गया ! जय हो !

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 19, 2013 at 8:04pm

शुक्रिया वीनस भाई हौसला-अफजाई के लिये |

एक ही मिसरे में 'मेरे' और 'हमारे' प्रयुक्त नहीं करना चाह रहा था लेकिन कुछ और बन नहीं पड़ रहा था लेकिन आपने तो समस्या ही दूर कर दी | बहुत-बहुत शुक्रिया |

/ *   भाई कम लिखें मगर ऐसा ही लिखें ...
या इससे अच्छा :)))))    */

वीनस भाई आपके इस सुझाव का अक्षरश: पालन किया जायेगा |   :) :)

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 19, 2013 at 7:50pm

ग़ज़ल पसंदगी के लिए शुक्रिया वेदिका जी ।

Comment by Meena Pathak on February 19, 2013 at 1:08pm

वाह बहुत खूब ... बधाई इस लाजवाब गज़ल के लिए 

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