For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम मोबाइल में अगर,बैलेडिटी विश्वास हो,
नेटवर्क समन्वय हो पुख्ता,हृदय बैट्री चार्ज हो।
प्रतिपक्ष नम्बर रांग हो,एकांत स्पीकर साफ हो,
नहीं समस्या कोई यारोँ,प्रेम पगी तब बात हो॥

घायल नहीं हुआ कभी,जो तीर ओ तलवार से,
वो ही घायल हो गया,तेरे नजर के वार से।
पैदाइश से आज तक,जीत जिसकी हमसफर,
वो ही जीता जा चुका है,आज तेरे प्यार से॥

यार मैं तो रात का,शुक्र गुजार बन गया हूं,
वो बन गये हैं वादक,मैं सितार बन गया हूं।
बेदर्द बड़े प्यार से,बजाते हैं मुझको,
उनकी इस अदा पे,मैं झंकार बन गया हूं॥

जमाना जुल्म ढाये तो,मुझे गम नहीं होगा,
वो रूठ भी जायें,सितम से कम नहीं होगा।
मुस्कराके इक नजर,बस देख ले मुझको,
ये खुदा के इनायत से,कम नहीं होगा॥

इधर आग की दरिया,उधर आब का समंदर है,
दोनों ही तरफ विन्ध्येश्वरी मौत का मंजर है।
हालात बड़े नाजुक हैं,कहो क्या करें,
सोचता हूं खामोश,खड़े रहना ही बेहतर है॥

Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 7:14pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी रचना की सराहना के लिये हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 7:12pm
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण जी!लेकिन मेरी क्या बिसात हुजूर की में बेड़ा पार करूं ये तो करतार ही कर सकता है।
सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2012 at 2:57pm

सभी मुक्तक अच्छे लिखे हैं बहुत बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 11:51am

मुस्कराके इक नजर,बस देख ले मुझको, ये खुदा के इनायत से,कम नहीं होगा॥

बहुत प्रभावपूर्ण रचना के लिए बधाई श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीजी -
मुस्कराके एक नजर, देख ली तेरी तस्वीर,
अब तो इनायत बक्शों,बनजाय मेरी तक़दीर--लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service