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कठिन काल के आवेगों से,कभी नहीं बच पाओगे,
परिवर्तन ही सत्य जगत का,सच को कहा छुपाओगे।
लौह सदृश इस सुगढ़ देह को,देख नहीं इतराओ तुम,
जब आयेगी काल की आंधी,तिनके सम उड़ जाओगे॥

ध्वस्त हुआ रावण का सपना,जो त्रैलोक्य विजेता था,
अस्त हुआ साम्राज्य ब्रिटिश का,अस्त सूर्य ना होता था।
मिटा सिकंदर विश्व विजेता,नेपोलियन बर्बाद हुआ,
अहंकार यदि नष्ट हुआ ना,मिट्टी में मिल जाओगे॥

ईश अंश श्रीराम कृष्ण भी,छोड़ धरा को चले गये,
कालजयी वो भीष्म पितामह,शर-शैय्या से बिंधे गये।
दस सहस्र गज सम बल वाला,भीम काल में समा गया,
ईश नहीं जब बचे काल से,कहो कहां बच पाओगे॥

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Comment by seema agrawal on September 6, 2012 at 1:24am

बहुत  सुन्दर रचना विन्धेश्वरी भाई 

कठिन काल के आवेगों से,कभी नहीं बच पाओगे,
परिवर्तन ही सत्य जगत का,सच को कहा छुपाओगे।.......वाह सत्य को स्मरण रखने का सुन्दर आह्वान 

लौह सदृश इस सुगढ़ देह को,देख नहीं इतराओ तुम,
जब आयेगी काल की आंधी,तिनके सम उड़ जाओगे॥..........बहुत खूब निश्चित नियती के प्रति चेताती पंक्तियाँ 


अहंकार यदि नष्ट हुआ ना,मिट्टी में मिल जाओगे॥............वाह बहुत ही सादगी से कही गयी सच्ची बात 

ईश नहीं जब बचे काल से,कहो कहां बच पाओगे॥.............बहुत बढ़िया गीत के लिए हृदय से बधाई और शुभकामनाएं 

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 1, 2012 at 8:15am

ध्वस्त हुआ रावण का सपना,जो त्रैलोक्य विजेता था,
अस्त हुआ साम्राज्य ब्रिटिश का,अस्त सूर्य ना होता था।

वाह! बहुत जोश जगाती रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 8:12pm
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी!
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 11:39am

काल का आवेग (गीत) अति सुन्दर यथार्थ, सत्य को उजागर करती और अच्छा सन्देश देता गीत बहुत बधाई  भाई श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी

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