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तुमने चाहा मेरा वजूद ही मर जाए  
किन्तु तुम्हारे प्यार में मै बुत था,

मेरे प्रेम तप से अनजान बने क्यूँ. 
क्या तुम्हें मेरा विश्वास कम था...........,

तुम शौके बहार बन आए जीवन में 
मैंने भी सब कुछ नाम किया तुम्हारे
प्रीत प्याले को हाथ में देकर
तुम अमृत की जगह विष दे डाले.......  

तुम एक प्रेयसी बन के आए थे
तुम्हारी खुशबू से महक उठा मै 
नए जोश उमंग से घड़ियाँ प्रेम की बीतीं. 
ऐसा जख्म दिया साथी, ये जिंदगी है मुझसे रूठी........

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Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on August 11, 2012 at 4:32pm

धन्यवाद सुरेन्द्र जी ......!!!
आपका हार्दिक आभार ...............!!

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 10, 2012 at 12:47pm

मेरे प्रेम तप से अनजान बने क्यूँ.  
क्या तुम्हें मेरा विश्वास कम था...........,

प्रिय संजय जी बहुत सुन्दर भाव ...आइये तप करते वक्त ही उन्हें जता दें बता दें कहीं देर न हो जाए 

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाये आप सपरिवार और सारी प्यारी मित्र मण्डली को भी 
भ्रमर ५ 

 

Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on May 7, 2011 at 3:17pm
धन्यवाद आनंद जी.......................... 
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on May 7, 2011 at 3:17pm
धन्यवाद आनंद जी.......................... 
Comment by Anand kumar Ojha on May 7, 2011 at 1:18pm
Aati sundar .....
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 23, 2011 at 12:44pm

 

धन्यवाद,वन्दना जी .......... 

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