For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहाँ जाऊं ......कहाँ जाऊं.....????

मैं घायल सा परिंदा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं,

हैं पर टूटे मैं सहमा हूँ कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं.

.

यही किस्मत से पाया है, जो अपना था पराया है,

परीशां हूँ मैं तनहा हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ

.

भले तपता ये सहरा हो, तुम्हें अपना बनाया तो,

घना साया सा पाया हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ

.

तुम्ही से जिंदगी मेरी, तुम्ही से हर ख़ुशी मेरी,

तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ, कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ

.

मेरी गजलें अधूरी थी, तुम्हें पाया तो पूरी की,

मैं सब कुछ तुम से पाता हूँ, कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ

.

Views: 553

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on February 13, 2012 at 7:00pm

जी  नहीं,,,,, पिछले शेर से मफहूम नहीं लिया जा सकता
हर शेर में स्वतंत्र रूप से बात पूरी होनी चाहिए

भाव पक्ष के लिए मैं यह सोचता हूँ कि प्राथमिकता अपनी संतुष्टि को देनी चाहिए
यदि आप संतुष्ट हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योकि १० लोग पसंद करेंगे तो २-३ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिनको रचना जियादा पसंद ना आये

आपने शेर के मिसरा ए ऊला में भी काफिया को निभाने की कोशिश कैसे की है समझ नहीं पाया ...

Comment by इमरान खान on February 13, 2012 at 4:47pm

वीनस भाई मैं शुक्रगुज़ार हूँ आपका ... मुझे भी ये ग़ज़ल गुनगुनाने में ही ठीक लगती है...  आपका मार्गदर्शन मुझे आनंदित कर रहा है...

आपने जो चौथे शेर की बात की है .. दरअसल मैंने तीसरे शेर में जो कहना चाहा है के  'आप मुझे जलते सेहरा में साए की मानिंद पाए हैं' ... सहरा में तो साया मिल गया .. चौथे शेर में भी मैं उसी बात को जारी रखने की कोशिश कर रहा हूँ...  
मेरी उत्सुकता है के क्या फिछले शेर से मफहूम नहीं लिया जा सकता?

वैसे जलने का मतलब 'दिल जलने' से भी तो होता है ... जैसे कहते हैं के तुमने अगर मुझे छोड़ दिया तो मेरा दिल जलता रहेगा... एक गाना भी याद आया .. 'जिया जले जाँ जले .....'



दूसरे इस ग़ज़ल मैं मैंने हर शेर के मिसरा ए ऊला में भी काफिया को निभाने की कोशिश की है .. इसके बारे में कुछ बताइए, कुछ फर्क पड़ता है या नहीं इस बात से?

Comment by वीनस केसरी on February 12, 2012 at 3:06pm

वाह वाह वाह
उम्दा
रदीफ "कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं" में जो दोहराव आ रहा है वह शेर में अतिरिक्त आनंद दे रहा है
अच्छे शेर हुए हैं
हार्दिक बधाई
गुनगुनाकर पढ़ने में ग़ज़ल आनंददायक है


एक बात महसूस हुई है तो उसे कहने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ

तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ, चौथे शेर में जस्टीफाई नहीं हो पा रहा है  यदि इस बात को यदि तीसरे शेर में पिरोया जाता तो तीसरा शेर और अच्छा बनता क्योकि उसमें सहरा की बात की गई है

जैसे -

भले तपता है यह सहरा, घना साया मिले हो तुम

तुम्हें छोडूं तो जलता हूँ कहाँ जाऊँ कहाँ जाऊँ


सादर

Comment by इमरान खान on February 12, 2012 at 11:12am

@ नीरज जी
@ अविनाश जी
@ राज शर्मा जी
आप सभी की हसला अफजाई के लिए में शुक्रगुज़ार हूँ.. :))

Comment by इमरान खान on February 12, 2012 at 11:11am

मोहतरम गणेश जी बागी साहब... आपके शब्दों ने मेरे प्रयास को सार्थक कर दिया है... आपके इस और इसी तरह के अनुमोदन मेरे जैसे नौसिखिये के लिए प्रेरणा का स्रोत साबित होते हैं... आपका हार्दिक धन्यवाद् :)

Comment by इमरान खान on February 12, 2012 at 11:08am

@मुकेश भाई दर्द की इन्तहा के बाद ही तो ख़ुशी का भी एहसास होता है... शुक्रिया आपका..

Comment by राज लाली बटाला on January 7, 2012 at 9:24am

wah Bahut khoob!

Comment by AVINASH S BAGDE on January 5, 2012 at 9:02pm

shandar


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 2, 2012 at 9:06pm

इमरान भाई , लम्बे रदीफ़ के साथ ग़ज़ल को निभा जाना मामूली बात नहीं है, सभी शेर भी ठीक ठाक निकाले है, बधाई स्वीकार करे |

Comment by Mukesh Kumar Saxena on January 2, 2012 at 6:11pm
itna dard kaha se laye. Dil ko choo liya.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
14 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service