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रजनीगन्धा मुस्कुराए न मुस्कुराए

कोई तो ऐसा दिन भी आए
कि रजनी हँसे रजनीगन्धा मुस्कुराए
बहुत दिन बीते बस यूँ ही रीते रीते
बहुत दिन बीते स्वयं ही जीते जीते
दे के मुल्क को बाकी दस महीने
अपने जो घर फ़ौजी सावन नहाए
भले ही न फिर कोई रजनी हँसे
न ही भले रजनीगन्धा मुस्कुराए
.
क़सम दे अपनी नाश्ते खिलाए
सूखे सवालों को घी दे जिलाए
सीमा से बहरे हुए मन मानस
उन्हें हीर राँझा से हंस के मिलाये
कैसे न फिर कोई रजनी हँसे
कैसे न फिर रजनीगन्धा मुस्कराए
.
पूरी बरस धनिया मन्नत मनाये
गोबर को होरी के क़िस्से सुनाये
गोदान ख़ातिर जिए तब उमर भर
कितने भरसक किए तब उमर भर
अब के तो जैसे हो गोदान  हो  जाए
बेशक न फिर कोई रजनी हँसे
बेशक न फिर रजनीगन्धा मुस्कुराए 
.
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by pratibha pande on July 16, 2019 at 9:34am
बहुत दिन बीते स्वयं ही जीते जीते
दे के मुल्क को बाकी दस महीने
अपने जो घर फ़ौजी सावन नहाए
भले ही न फिर कोई रजनी हँसे
न ही भले रजनीगन्धा मुस्कुराए//  वाह    दो महिने की सालाना छुट्टी पर घर लौटे फौजी को केन्द्र में रख क्या खूब सृजन किया है आपने । हार्दिक बधाई आदरणीया अमीता जी
Comment by amita tiwari on July 13, 2019 at 1:00am

आदाब जनाब कबीर साहिब     हिम्मत अफजाई के लिए शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on July 10, 2019 at 8:23pm

मुहतरमा अमिता तिवारी जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

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