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तेरे रुखसार हैं या दहके गुलाब-------ग़ज़ल

1222 1222 2121

तेरे रुख़्सार हैं या दहके ग़ुलाब
ये तेरी ज़ुल्फ़ है या तेरा हिज़ाब

हटा के ज़ुल्फ़ का पर्दा, उँगलियों से
बिखेरो चाँदनी मुझ पर माहताब

करीब आ तो, निगाहों के पन्ने पलटूँ
मैं पढ़ना चाहूँ तेरे मन की किताब

महज़ चर्चा तुम्हारा, बातें तुम्हारी
इसे ही सब कहें, चाहत बे-हिसाब

ज़माना तुहमतें चाहे जितनी भी दे
ग़ज़ल पंकज की, है तुझको इंतिसाब

===============================
कठिन शब्दों के अर्थ----

हिज़ाब=पर्दा

माहताब=चाँद

इंतिसाब=किसी के नाम करना

===============================

मौलिक अप्रकाशित

Views: 665

Comments are closed for this blog post

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 12, 2019 at 11:08am

आदरणीय बाऊजी प्रणाम

इसमें आपके सुझाव भी सहयोगी हैं

Comment by Samar kabeer on March 12, 2019 at 9:03am

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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