For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"वो" और "मैं"...!!

((जब-जब 'खुद' को देखना चाहा... खुद को दो हिस्सों में बंटा पाया... कभी "वो" जो जीती ज़िन्दगी... तो कभी "मैं" जिसे जीती ज़िन्दगी... कुछ शब्द सिर्फ 'मेरे' बारे में... मेरी 'नज़र' में... मुझे जानने के लिये... मुझे समझने के लिये...))



वो सोचती बहुत...
मैं उसे रोक नहीं पाती...
वो नादाँ बहुत...
मैं उसे समझा नहीं पाती...
वो हंसती बहुत...
मैं मुस्कुरा भी नहीं पाती...

वो अनजान सबकी निगाहों से...
मैं जानती वो ये परख नहीं पाती...
वो समझती कि वो समझती है सबको...
मैं नासमझ कि मैं खुद को नासमझ हूँ पाती...
वो खुश कि वो नहीं जानती छल-कपट...
मैं नाखुश कि मैं ये छल से उसे वाकिफ करा नहीं पाती...
वो रखती बड़ा दिल हर किसी के लिये...
मैं बड़े दिल में भी खुद को समां नहीं पाती...

वो उभरती हर नए दिन के साथ...
मैं हर शाम के साथ गहरा नहीं पाती...
वो करती कोशिशें दिल ना तोड़ने की...
मैं टूटे दिलों को नज़रें उठा देख भी ना पाती...
वो मदमस्त अल्हड़ पवन की तरह...
मैं गंभीर, खुद को वक़्त-सा चलता पाती...
वो सजाती इन्द्रधनुष सपनों के आसमान में...
मैं बादलों से इन्द्रधनुष को छुपता पाती...

वो पसंद ना करती मुझे...
मैं उसे अपनी पसंदगी में ना पाती...
वो करती तकरार, रखती तर्क अपनें...
मैं चुप रहती, उसे नकार ना पाती...
वो तंग आ चुकी मुझसे पर साथ ना छोड़ती...
मैं भी मजबूर उस से जुदा हो ना पाती...
वो करती जब ढोंग मुझसे अनजान रहने का...
मैं भी तब उसकी नाराज़गी नज़रंदाज़ कर पाती...

वो बढ़ती रहती अपनें रास्ते...
मैं अपनें क़दम मंजिल को बढ़ता पाती...
वो चाहतें रखती बेशुमार...
मैं झूठी चाहतों को पनाह दे ना पाती...
वो अपनें अन्दर की "मैं" बन ना पाती...
मैं अपनें अन्दर की "वो" से खुद को दूर होता पाती...!!

:::::::: जुली मुलानी ::::::::
:::::::: Julie Mulani ::::::::

Views: 456

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Julie on July 3, 2011 at 1:09am
शुक्रिया रवि जी... :-)
Comment by Rash Bihari Ravi on June 29, 2011 at 6:45pm
khubsurat lajabab
Comment by Julie on June 28, 2011 at 8:47pm
संगीता जी आभार... ... ... :-)
Comment by Julie on June 28, 2011 at 8:47pm
सौरभ जी आभार... आशीष बनाये रखें... :-)
Comment by Julie on June 28, 2011 at 8:46pm

वंदना जी बेहद शुक्रिया पसंद करने का... ... ... :-)

Comment by Julie on June 28, 2011 at 8:45pm
गणेश जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका हौंसलाअफज़ाई के लिए... ... ... :-)
Comment by sangeeta swarup on June 26, 2011 at 4:12pm
वो और मैं की कश्मकश को खूब उजागर किया है ...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2011 at 1:55pm
प्रयोगधर्मिता के नये सोपान.. बधाई

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 24, 2011 at 9:07am
बहुत खूब जुली , अपने ही अक्स को केन्द्रित कर कविता कर आसान नहीं होता , किन्तु आप ने कर दिखाया है , खुबसूरत भावाभियक्ति , बहुत बहुत बधाई आपको !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service