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 ख्याल-1

1 तुम मेरी ज़िन्दगी से निकल जाओ

तुम्हारे रहते दिल सम्भाला ना जाए

रोशनी कोई कैसे कोई जले अंगने में

यादों का जब तक उजाला ना जाए

खुशबुएँ तर हो महके कोना कोना

किताबों से वो फूल निकाला ना जाए

प्यार है उसे रिश्ते का नाम ना दो

सितम हद करे नाम उछाला ना जाए |

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ख्याल-2

यूँ जो चुपके से तुम अब भी बात करती हो

मुझे महसूस होता है अब भी तूफा हैं दिल में

खुदा ने रहमतों में  तुम्हें इश्क  नवाजा  है

ताउम्र अपने फूल  की  खातिर  भटकना है  

पकड़ में  माली के  तुम्हारे पर  थिरकते हैं

तुमकों डर नहीं लगता  है  पर टूट जाने से !

एक मुझे देखों  मैंने टूट  कर रंग वो  सारे  

भरे बाज़ार में  नीलाम करने को  हैं  उतारे

तुम्हें फिर भी शिकायत नहीं क्या मिजाज़ है

तितली बता तू क्यों मुझसे इतनी नाराज़ है

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )

 

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Comment

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Comment by Samar kabeer on February 25, 2018 at 10:56am

जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,प्रयास अच्छा है,कुछ कहने में असमर्थ इसलिये हैं कि रचना आपने किस विधा में लिखी है बताया नहीं ।

रचना में शिल्प और व्याकरण की कमज़ोरी पर क़ाबू पाने का प्रयास करें ।

Comment by somesh kumar on February 23, 2018 at 9:52am

pdhne evm utsahvrdhn ke lie shukriya 

Comment by Shyam Narain Verma on February 22, 2018 at 5:36pm
बहूत खूब, हार्दिक बधाई l सादर

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