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तज़मींन बर ग़ज़ल फ़िराक़ गोरखपुरी
2122 2122 2122 212

उसके लब औ' जाँफ़िजा़ आवाज़ की बातें करो
फिर उसी दमसाज़ के ऐजाज़ की बातें करो
सोगे इश्क़ आबाद है अब साज़ की बातें करो
"शामे ग़म कुछ उस निगाहें नाज़ की बातें करो
बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो."

ज़िंदगी में जाविदाँ हैं अाहो दर्दो रंजो ग़म
जिक्र से उस शोख़ के देखे गए होते ये कम
उसके ढब,उसकी हँसी,हर शौक़ उसका हर सितम
"नक्हते ज़ुल्फ़े परीशां दास्ताने शामे ग़म
सुब्ह़ होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो".

रात भर तारीकियों में उसका चेह्रा ढूँढना
रतजगे से पलकें भारी,ख़ुद से हूँ नाआशना
देख शबनम का क़दम के जौर से यूँ फूटना
"ये सुकूते यास, ये दिल की रगों का टूटना
ख़ामुशी में कुछ शिकस्ते साज़ की बातें करो."

मेरे शाने से लगी उसकी कभी हस्ती रहे
और आँधी सी कभी पहलू से वो उठती रहे
आह भी गाहे ब गाहे साँस में घुलती रहे
" हर रगे दिल वज्द में आती रहे, दुखती रहे
यूँ हीं उसके जा ओ बेजा नाज़ की बातें करो"

दिख रहा है मुझको मंजर आर से उस पार का
आ रही बाहर से भीतर एक भूली सी सदा
आज ज़ंजीरें झनकती पैरों में हैं बारहा
"कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ फ़ज़ा कुछ हसरते परवाज़ की बातें करो"

जाँ फि़जा़ - प्राण बर्धक, एजाज़ - चमत्कार जाविदाँ - हमेशा
सुकूते यास - निराशापूर्ण मौन
जा ओ बेजा- उचित अनुचित
क़फ़स - कैद खाना

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by shree suneel on July 11, 2016 at 7:22pm
प्रस्तुति तक आने व सराहना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज सर जी. सादर
Comment by shree suneel on July 11, 2016 at 7:20pm
तज़मींन की सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रवि शुक्ला जी. सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2016 at 8:26pm

आदरणीय श्री सुनील भाई , फिराक़ साहब की गज़ल पर आपकी तज़मीन  बहुत पसंद आयी , बहुत खूब ,  मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by Ravi Shukla on July 6, 2016 at 12:21pm

आदरणीय श्री सुनील जी तजमीन के लिये फिराक साहब ही गजल चुनी और बढि़या तजमीन पेश की इसके लिये आपको बहुत बहुत बधाई  अच्‍छा गला इस रचना को पढ़कर । पुन: बधाई 

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