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गज़ल....बह्र----२१२२, ११२२,  ११२२,  २२

आम के बाग में महुआ से मिलाया उसने.

मस्त पुरवाई हसीं फूल सजाया उसने.

शुद्ध महुआ का प्रखर ज्ञान पिलाया उसने'

संग होली का मज़ा प्रेम सिखाया उसने.

ज़िन्दगी दर्द सही गर्द छिपा कर हॅसती,

चोट गम्भीर भले घाव सिलाया उसने.

ताल-नदियों में अड़ी रेत झगड़ती रहती,

लाज़-पानी के लिये मेघ बुलाया उसने.

वक्त की खार हवा घात अकड़ पतझड़ सब,

होलिका खार की हर बार जलाया उसने.

रंग सत्कार लिये प्रेम की तितली मचली,

वृद्ध - बच्चों में युवा ज़ोश जगाया उसने.

दर्द महुआ की चुवन गंध चमेली जैसी,

देह सूरज की तपन, बर्फ लगाया उसने.

चिप्स पापड़ में ठनी माल-पुआ हॅसते रस,

गोझिया फूल गयी, खस्ता खिलाया उसने.

ईद -होली का सबब गीत गज़ल कविता में,

आप लोगों की कसम, खूब हॅसाया उसने.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 28, 2016 at 4:30pm

आ० बिन्दौरी भाई जी,  आपका बहुत-बहुत हर्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 28, 2016 at 4:30pm

आ० रामबली भाई जी,  आपका बहुत-बहुत हर्दिक आभार. सादर

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 28, 2016 at 11:38am
वाह क्या बात है सादर बधाई
Comment by रामबली गुप्ता on March 27, 2016 at 1:59pm
वाह वाह आदरणीय
सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें

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