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लघुकथा- अनाथ

पत्नी की रोजरोज की चिकचिक से परेशान हो कर महेश पिताजी को अनाथालय में छोड़ दरवाजे से बाहर तो आ गया, मगर मन नहीं माना. कहीं पिताजी का मन यहाँ लगेगा कि नहीं. यह जानने के लिए वह वापस अनाथालय में गया तो देखा कि पिताजी प्रबंधक से घुलमिल कर बातें कर रहे थे. जैसे वे बरसों से एकदूसरे को जानते हैं.

पिताजी के कमरे में जाते ही महेश ने पूछा, “ आप इन्हें जानते हैं ?” तो प्रबंधक ने कहा, “ जी मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूँ. वे पिछले ३५ साल से अनाथालय को दान दे रहे हैं . दूसरा बात यह है कि ३५ साल पहले जिस  बालक को वे इसी अनाथालय से गोद ले गए थे, वहीँ उन्हें यहाँ छोड़ गया.”

                                  ------------------------

१८/१०/२०१५ 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 736

Comment

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Comment by Omprakash Kshatriya on October 23, 2015 at 10:24am

इस मंच के सभी साथियों का दिल से आभार. यह मंच सीखनेसिखाने का एक अच्छा प्लेटफोर्म है. यह आ कर दिल को एक सकून मिलाता है. लगता है कि हम भी कुछ लिख रहे हैं. इस तरह के स्वस्थ परम्परा को मेरा अभिनन्दन .

Comment by Omprakash Kshatriya on October 23, 2015 at 10:22am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर  जी आप की दाद मिल गई , समझो मेरी मेहनत सफल हो गई. आप की इस आत्मीयता के लिए दिल से आभार . वैसे  आ  बागी जी की बात का संज्ञान पहले ही ले चूका हूँ. अंतिम पंक्तियाँ हटा  दी है. इस से लघुकथा और निखर गई है.

आ कांता रॉय जी  व आ Er Ganesh जी  बागी जी का पुन शुक्रिया. आप ने मेरी लघुकथा में निखर लाने के लिए सुझाव दिया.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 22, 2015 at 11:58pm

वाह वाह वाह 

आदरणीय ओमप्रकाश जी शानदार लघुकथा हुई है. आपको बहुत बहुत बधाई 

आदरणीय बागी सर की बात पर जरुर गौर कीजियेगा. सादर 

Comment by Omprakash Kshatriya on October 22, 2015 at 1:20pm
आदरणीया प्रतिभा पांडे जी आप ने लघुकथा को समय दे कर मेरा मान बढ़ाया । आभार आप का ।
Comment by Omprakash Kshatriya on October 22, 2015 at 1:19pm
आ कांता जी संशोधन करने करने की कोशिश कर रहा हूँ । ताकि अंतिम पंक्तियाँ हटाई जा सके । सादर ।
Comment by pratibha pande on October 22, 2015 at 10:08am

बहुत सार्थक लघु कथा ,कसे हुए शिल्प के साथ  बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय 

Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 9:50am
आदरणीय बागी जी की मार्गदर्शन सटीक और सार्थक है आदरणीय ओमप्रकाश जी । उनका मार्गदर्शन हम सबके लिए लाभकारी है । आप संशोधन करें । कथा के हित में यह सही रहेगा । सादर
Comment by Omprakash Kshatriya on October 22, 2015 at 9:34am
यदि आप की अनुमति हो तो मैंसंशोधन कर दूँ । कृपया स्वीकृति से अवगत करवाए आदरणीय सुधिजनों । सादर ।
Comment by Omprakash Kshatriya on October 22, 2015 at 9:31am
आ इंजीनियर गणेश जी बागी जी आप की समीक्षात्मक टिप्पणी पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया । आप का कहना सही है, लघुकथा की अंतिम पंक्तियाँ गैर जरुरी है । यदि मैं संशोधन करता हूँ तो यह लघुकथा वापस अप्रूव होने जाएगी । इस डर से संशोधन नही कर पा रहा हूँ । सादर ।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 22, 2015 at 8:47am

// “ आप इन्हें जानते हैं ?” तो प्रबंधक ने कहा, “ जी मैं इन्हें अच्छी तरह से जानता हूँ. ये पिछले ३५ साल से इस अनाथालय को दान दे रहे हैं . दूसरी बात यह है कि ३५ साल पहले जिस बालक को ये इसी अनाथालय से गोद लेकर गए थे, वहीँ उन्हें यहाँ छोड़ गया.” 

---बस यही इस लघुकथा को समाप्त हो जाना चाहिए था, आगे की पक्ति निरर्थक है, अच्छी लघुकथा हुई बहुत बहुत बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी.

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