For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

          उठा था चमकता-दमकता....

जोश से... ... ...

ये भूल... कि है पल भर का खेल...


इतना नाज़ुक...

जहाँ स्पर्श तो दूर...

हवाओं संग आये चंद खिर्चे तक...

लूट लेंगे... उसका 'अस्तित्व'...

ना छोड़ेंगे कोई निशाँ... उसका...

 

मगर वो...

वो तो सब कुछ जान के भी...

उड़ रहा था ऊंचा... और ऊंचा...

इस बात से अनजान...

कि ज्यादा ऊंचाई...

अक्सर गिरने का भी मौका नहीं देती...

वो ख़त्म कर देती है... 'सब कुछ'... वहीँ...

पर फिर भी... वो खुश था...

अपनीं 'पल' की ज़िन्दगी से भी...

 

साफ़ था वो बिलकुल...

निश्छल...

हल्का-सा सतरंगी... ... ...

 

किसी आईने की तरह... ... ...

जो देखता, हलकी-सी उसकी झलक दिखलाता...

देख उसकी मुस्कान...

उसके करीब जाता...

मगर, वही नजदीकी...

उसकी मुस्कान छीन लेती...

 

एक प्यार भरा स्पर्श भी,

कहाँ नसीब होता है... किसी-किसी को...

मासूम-सी मोहब्बत की तरह...

होता है 'अंजाम'... ... ...

हर नाज़ुक चीज़ का...

हर नाज़ुक 'एहसास' का...

हर नाज़ुक... "बुलबुले" का... ... ...!!

 

:::::::: जूली मुलानी ::::::::

:::::::: Julie Mulani ::::::::

Views: 520

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Julie on April 13, 2011 at 7:45pm
Nemichand jee... Bahut Bahut Shukariya aapka, Rachna pasand karne ka liye... :)
Comment by Julie on April 13, 2011 at 7:44pm
गणेश जी... बहुत बहुत आभार आपको कविता पसंद आई... :-)
Comment by Nemichand Puniya on April 13, 2011 at 9:52am

Julie ji, Hawaon ke sang aaye chand khirche tak,nazuk.sundar abhivykti.aabhaar.

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2011 at 8:56am
जुली ! बहुत बढ़िया, एक बुलबुला और इतनी खुबसूरत कविता,

एक प्यार भरा स्पर्श भी,

कहाँ नसीब होता है... किसी-किसी को...


बुलबुले की तरह ही नाजुक अभिव्यक्ति, बधाई इस ससक्त कृति हेतु |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
9 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
9 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
10 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service