For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


पीपल के पेड़ के नीचे ,बनाया उसने आशियाँ

सिर्फ उसका , उसका ही  था वो जहाँ

जिंदगी से कुछ पल चुराकर,जहाँ जाकर,

बिठाती,खुद को खुद के पास ले जाकर,

सबसे हसीन थे ये पल,

जहाँ खुद में खुद को पाकर,खुद ही खो जाती

अपने को जहाँ से आगे आती

 

जिंदगी की किताब का हर एक पन्ना, जो उसने स्वयं था बुना

हर दिन खोलती, और उसी में गुम हो जाती

कभी छूतीं, सहलाती. कभी पकड़ने दौड़ती

समय की बहती धारा को पीछे छोड़ती

 

याद आते थे वो पल,जो धडकनों ने सुने,

कुछ ख्वाबों  ने बुने, रखती सिरहाने

जैसे लगे कोई मीठी नींद सुलाने

अब होता था ऐसा अक्सर,

मधुर ठंडी हवा का अहसास जैसे छू लेता था रूह तक

 

एक दिन हुआ ये भी ,किसी ने चुराने चाहे पल ये भी

पर उन गुजरे पलों ने दिया था, हौसला अटल

अडिग सी रही वो अविचल,

यही सुनहरे पल तो है, उसके हमसफ़र

चाहे कितनी टेढ़ी क्यों न हो डगर,

चलेंगे ये हमकदम बनकर हर पल

 

यादों की खिड़कियाँ सी खुल जातीं

 उसकी तरफ हाथ  बढ़ाती और सहेली बन जातीं

फिर कहाँ अपने को अकेला पाती

हंसती ,गुनगुनाती,कभी सूनी डगर पर पायल सी झनक जाती

 

इन लम्हों में जब जाती थी ग़ुम,

ढूढ़ने का करते थे हम परिश्रम,

 काम नहीं न आता था कोई उपक्रम,

 शायद खुदा के अतिरिक्त सबका साहस था कम

 

 

 [anushri]

Views: 354

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by anupama shrivastava[anu shri] on January 23, 2011 at 12:22pm
hardik dhanyavad r.k. pandey ji .apke is utsahvardhan ke liye bahut abhaar apka bhi.
Comment by R. K. PANDEY "RAJ" on January 21, 2011 at 8:49pm
bahut hee sundar aur bhawnapurn kawita jo tasweer ke saath jeewantata ka ehsaas karaane ko kaafi hai.

ees kawita ko hamsabhi ke beech prastut karne ke liye aapko dhanywad aur abhaar.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
11 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service