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क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!

जिसका विधान न हो!

न अनुनय के शब्द रहे 

तेरी प्रार्थना रिक्त रहे 

और प्रार्थी का तुझ

सम्मुख; कोई मान न हो 

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!

धूप आई झुलसाती 

चाँद रात गल जाती 

मृतक देह का फिर भी 

क्यों अवसान न हो   

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!  

दीपशिखा सा चिर जलना 

अंध प्रश्न का तो हल ना 

उस अनंत अविधि में भी 

कुछ समाधान न हो 

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …! 

चरणध्वनी गुम होती सी 

रक्त प्रवाहिनी सोती सी 

रैना मेरे घर ठहरी की 

कोई विहान न  हो  

क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!

पदचिन्हों की आहट पाती 

राह स्वयं तो न चल पाती 

कोई चले तो कैसे की 

पग के निशान न हो 


क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …!  

दृष्टी नित होती धुंधली 

बीते कल में थी उजली 

घना छा रहा धुंध किन्तु 

नव ज्योतिर्मान न हो 


क्या विधि लिखूँ  सत्य वह …! 

                      गीतिका 'वेदिका'

मौलिक प्रकाशित  

 

 

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Comment by वेदिका on August 4, 2013 at 8:54pm

आपका अतिशय आभार आदरणीय अभिनव अरुण जी! 

आपने रचना के भावों को गृहीत किया !

Comment by Abhinav Arun on July 31, 2013 at 7:11pm

मन के अवगुंठन शब्दों का साथ पा काव्य में झंकृत हुए हैं हार्दिक साधुवाद बहुत सशक्त रचना |

Comment by वेदिका on June 27, 2013 at 9:02pm

आप जितना भी समझे आदरणीय माथुर जी! बहुत है,, बहुत बहुत शुक्रिया !! 

अहम बात समझना है, समझने की मात्रिकता कुछ नही होती..:))  

Comment by D P Mathur on June 27, 2013 at 8:50pm

पदचिन्हों की आहट पाती
राह स्वयं तो न चल पाती
कोई चले तो कैसे की
पग के निशान न हो
ज्यादा नही समझता परन्तु जितना समझ पाया काफी अच्छा पाया , हार्दिक बधाई !

Comment by वेदिका on June 27, 2013 at 7:50pm

आपकी प्रतिक्रिया का बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी! आपकी आश्वस्त़ा अपने उपर देख कर खुद पे ही नाज़ करने को मन करने लगता है और साथ में एक डर भी जुड़ जाता है, अपेक्षा पर खरा उतरना का। किन्तु यह डर सकारात्मक रास्ते की ओर ले जाता है, वह रास्ता जो बेहतर प्रदर्शन को प्रेरित करता है|

// प्रस्तुति में गेयता कहीं कहीं बाधित लगी.// …  निवेदन है अगर आप उन पंक्तियों को इंगित कर देंगी तो मै आपकी बहुत आभारी होउंगी और उन पंक्तियों पर काम कर सकूंगी।

 

Comment by वेदिका on June 27, 2013 at 7:42pm

रचना पर बधाई हेतु शुक्रिया आदरणीया मीना जी! स्नेह बनाये रखिये!! 

Comment by वेदिका on June 27, 2013 at 7:41pm

आपने सत्य पहचाना आदरणीया सावित्री जी! रचना मन की उथल पुथल में ही रची गयी है।  

Comment by वेदिका on June 27, 2013 at 7:39pm

आपको भाव सुंदर लगे,, आपका शुक्रिया आदरनीय विजय जी! 

Comment by वेदिका on June 27, 2013 at 7:38pm

आदरणीया कुंती जी! नमन,, एक राहत की बात होती है जब आपकी दृष्टी से रचना गुज़रे और भाव और शिल्प पर कसी हो।    

Comment by वेदिका on June 27, 2013 at 7:36pm

आपके स्नेह की शुक्रगुज़ार हूँ भैया राम शिरोमणि जी!

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