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व्यंग्य कविता मेरी प्यारी 

सच बिकना मुश्किल यारों झूठ के खरीददार बहुत,

इसलिए तो फलफूल रहा है झूठ का व्यापार बहुत।

सच बोलने वालों को तो झट सूली पे लटका देती,

झूठ बोलने वालों का साथ देती अब सरकार बहुत।

सब में चटपटी ख़बरें है मतलब की कोई बात नही,

वैसे तो इस शहर में यारों छपते हैं अख़बार बहुत।

भारत देश के नेता तो गिरगट को भी मात दे देते,

माहिर बड़े परिपक्क हो गए बदलते किरदार बहुत।

मालिक की मर्जी से ही बचता है किसी का जीवन,

चाहे स्पेस्लिस्ट भी डाक्टर करते हैं उपचार बहुत।

नेता की मेहरबानी से अयोग्य को नौकरी मिलती,

यूं पढ़े लिखे डिग्रीधारी घूम रहे है बेरोजगार बहुत।

गद्दारों की गिनती में बेशक इजाफा तो हो गया है,

फिर भी"रैना"जैसे भारत माँ से करते प्यार बहुत।"रैना"

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Comment by Yogi Saraswat on March 20, 2013 at 3:17pm

सब में चटपटी ख़बरें है मतलब की कोई बात नही,

वैसे तो इस शहर में यारों छपते हैं अख़बार बहुत।

भारत देश के नेता तो गिरगट को भी मात दे देते,

माहिर बड़े परिपक्क हो गए बदलते किरदार बहुत।

सार्थक सन्देश देती हुई खूबसूरत व्यंग्य रचना

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