For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरने से गुम जात हैं

 गिरने से गुम जात हैं मान अश्रू और ओस
समय धार में वही टिकें जिनके ह्रदय निर्दोष
.
बहते रहिये गंगा सम   जल पीवे संसार
ठहर गए जो जलधि सम हो जाए जल खार
.
कितने आये चले गए, चले जाएंगे   लोग
दो पल दिल संग  जी लिए नाम नदी संजोग
.
बस में सुर ऐसे करें ज्यों  बीन  सपेरा  बजाय
विषधर भूलें गरल निज, मोहित हो चले आये
बसें प्राण में ,जान में, मानस में बस जाए
ऐसे छलिया श्याम का कोई कैसे करे उपाय 
.
सामने कुछ बोलें नहीं ,सपनों में नित आय
ऐसे चंचल श्याम से अब श्याम ही जान बचाय
.
ताज उठा थे चल रहे अब हो गए तेरे अधीन
इस धरती पर आन के बहुत कृपा तुम कीन
.
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 460

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 27, 2016 at 6:49pm
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 27, 2016 at 6:48pm

http://www.openbooksonline.com/group/hindi_ki_kaksha

मुख्य पृष्ठ पर बहुत से लिंक या विषय हैं....देख लीजियेगा. सादर

Comment by amita tiwari on February 27, 2016 at 3:20am

आदरणीय केवल प्रसाद जी  
आपके इस मार्ग दर्शन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ .सच कहूँ तो पहचान ही नहीं पाई कि ये वही दोहे हैं मुझे आप कक्षा का लिंक भेजेंगे तो कृपा होगी . 
सादर  
अमिता  
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 26, 2016 at 5:05pm
आदरणीया अमिता जी,  आपके  दोहे  नियम की कसौटी पर न होते हुये  भी बहुत कुछ कह रहे थे जिसे मैं नजरंदाज़ नही कर सका.  इसलिये  मैंने  आपकी  भावनाओं को इस प्रकार से उद्धृत किया  है........आपके प्रयास  हेतु हार्दिक शुभकामनायें. सादर
गिरने से गुम जात हैं मान अश्रू और ओस
समय धार में वही टिकें जिनके ह्रदय निर्दोष
छलक-छलक कर नित गिरे, इज्जत-आंसू-ओंस.
किंतु समय मन साध कर, कहलाये निर्दोष.१
बहते रहिये गंगा सम   जल पीवे संसार
ठहर गए जो जलधि सम हो जाए जल खार
नदी-हवा बन कर बहें, सुखद करें संसार.
किंतु श्वांस-सर रोक कर, पगे नहीं दुख-खार. २
.
कितने आये चले गए, चले जाएंगे   लोग
दो पल दिल संग  जी लिए नाम नदी संजोग
जो आये वो चले गये, कहते हैं सब लोग.
पल दो पल के योग में, मिलन हुआ संयोग.३
बस में सुर ऐसे करें ज्यों  बीन  सपेरा  बजाय
विषधर भूलें गरल निज, मोहित हो चले आये
सुर ऐसे वश में करो, बीन करे ज्यों नाग.
अहम-क्रोध को भूलकर, झुके शीष-अनुराग.४
बसें प्राण में ,जान में, मानस में बस जाए
ऐसे छलिया श्याम का कोई कैसे करे उपाय 
बसे प्राण में, देह में,  मन-वाणी में नाम.
ऐसे छलिया कृष्ण को, सूर्य कहूं या श्याम.५
.
सामने कुछ बोलें नहीं ,सपनों में नित आय
ऐसे चंचल श्याम से अब श्याम ही जान बचाय
सम्मुख कुछ कहते नहीं, स्वप्नों के अधिराज.
ऐसे चंचल श्याम को, मेघ कहूं?  गिरिराज.
.
ताज उठा थे चल रहे अब हो गए तेरे अधीन
इस धरती पर आन के बहुत कृपा तुम कीन
मिट्टी की इस देह को, तेरे किया अधीन.
मीरा-राधा रुक्मणी, कहो सुदामा दीन.७
इस विधान को  समझ कर दोहे  लिखने का प्रयास करें अल्प समय में आप सिद्धहस्त हो जायेंगी.  इसी मंच पर हिंदी की  कक्षा चल रही है, जिसे ज्वाइन करके भी आप विस्तार से ज्ञानार्जन कर सकती हैं'   सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service