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हर फूल खुश्बू नहीं देता,हर कली  फूल नहीं बनती           

हर चमकता रात  में तारा नहीं होता ,हर चमकता पत्थर हीरा नहीं होता

जरा संभल के मेरे दोस्त हर बात सच्ची नहीं होती

हर मीठा स्वर अच्छा नहीं होता, हर खड़ी जीज सहारा नहीं होती,

हर खून का रिश्ता अपना नहीं होता ,हर दोस्त सच्चा नहीं होता .

जरा सभंल........

हर रात काली नहीं होती,हर दिन उजाला नहीं होता,

हर रात दिवाली नहीं होती, हर रोज होली नहीं होती.

जरा संभल......

हर लाल कपड़ा कफ़न नहीं होता, हर मुर्दा दफ़न नहीं होता

हर किताब वाला ज्ञानी नहीं होता, हर माला वाला ध्यानी नहीं होता

जरा संभल .....

हर फल पका नहीं होता ,हर माली रखवाला नहीं होता,

हर इंसान अच्छा नहीं होता, हर खिवैया पक्का नहीं होता

जरा संभल.....

हर जवानी दीवानी नहीं होती,हर प्यार की कहानी नहीं होती

हर बचपन जवान नहीं होता, हर बुढ़ापे का सहारा नहीं होता

जरा संभल ..........

हर जनम सफल नहीं होता,हर करम धरम नहीं होता,

हर पतझड़ बसंत नहीं लाता,हर अच्छा आदमी प्रसिद्धि नहीं पाता

जरा संभल.........

हर साज आवाज नहीं देता ,हर शिकारी बाज नहीं होता,

हर जंवा जांबाज नहीं होता,हर जाम पैगाम नहीं होता.

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 27, 2015 at 11:03am

बहुत सुंदर. सामयिक सार्थक सन्देश भी, बधाई आदरणीय श्याम जी

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 27, 2015 at 6:43am

बहुत सत्य है हर कथन ....बधाई आप को ......सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 27, 2015 at 12:46am
सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय श्याममथपाल जी , बधाई , सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 26, 2015 at 10:48pm

आदरणीय श्याम जी सूक्तियों की तार्किकता विचारणीय .....

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