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   यूकेलिप्टस से बाएं को मुडके...
   सफ़ेद कुरते में निकला था दिन अकेला सा..
   जेब में रख गुलाल की पुडिया..
   गाल उसका छुआ था...हौले से...
   सजा दिए थे सभी रंग एक ही पल में... नीले,पीले, गुलाबी और हरे..
  और एक रंग गिर गया था वहीँ...
  घर के बारामदे की चौखट पर....
  हो सके तौ वो रंग लौटा दौ....
 `होली, बेरंग हुई जाती है....

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Comment

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Comment by Sudhir Sharma on March 30, 2011 at 7:16pm
shukriya vivek ji,julie ji...
Comment by विवेक मिश्र on March 21, 2011 at 11:43am
खूबसूरत तरीके से संजोयी हुई नज़्म है. हार्दिक बधाई.
Comment by Julie on March 21, 2011 at 3:06am
///एक रंग गिर गया था... /// वो रंग लौटा दौ...///


वाह... सुधीर जी... सरल शब्दों में बड़ी गहरी बात कही... होली की शुभकामनायें...!!

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