For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैंने ऐसा मंज़र देखा

मैंने ऐसा मंज़र देखा।
बहती आँख समंदर देखा।।

मुझको अपना कहता था जो।
उसके हाथों खंजर देखा।।

मुखड़ा देखा जबसे उनका।
तबसे चाँद न अम्बर देखा।।

शायद कुछ तो दिख ही जाये।
मैंने खुद के अंदर देखा।

दूर दूर तक हरियाली थी।
धरती अब वो बंज़र देखा।।
**********************
राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Views: 781

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on December 27, 2014 at 9:29am
वंदना जी बहुत बहुत आभार आपका।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on December 27, 2014 at 9:28am
सुझाव व् उत्साह वतधन हेतु बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय वीनस भाई।।सादर
Comment by vandana on December 27, 2014 at 6:18am

बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय राम शिरोमणि जी 

Comment by वीनस केसरी on December 27, 2014 at 1:06am

शायद कुछ तो दिख ही जाये।
मैंने खुद के अंदर देखा।

अच्छा शेर हुआ है

धरती शब्द का प्रयोग स्त्रीलिंग अनुसार होता है, मिथिलेश जी का सुझाव उचित है

Comment by ram shiromani pathak on December 27, 2014 at 12:13am
भाई अजय जी बहुत बहुत आभार।।सादर
Comment by ajay sharma on December 26, 2014 at 10:34pm

bahut hi acche aashaar hue hai .....sambhav aur sarthak sudhar to mithilesh ji kar hi diya ....

 

Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 8:43pm
अनुराग जी बहुत बहुत आभार।
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 8:43pm
भाई मिथिलेश जी आपका अमूल्य सुझाव व् अनुमोदन सदैव प्रोत्साहित करता है।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 8:41pm
सोमेश भाई बहुत आभार।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 8:40pm
हरी प्रकाश जी बहुत आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service