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छोट जात -- लघु कथा

बरामदे की सीढ़ियाँ देख , कजरी नीचे खड़ी हो गई , संकोच वश उसके कदम ऊपर बढ़ ही नहीं रहे थे ॥ लाली ने उसको पुकारा -'आओ  ना , वहाँ क्यों  खड़ी हो ? कजरी सकुचाते हुये बोली -' का है कि हम छोट  जात है न , और हंम लोगन का  बड़े लोगन के घर की चौखट के भीतर नहीं जाना होत है अइसा हमारी माई कहे रही !!'  लाली ने उसका हाथ पकड़ा और ऊपर खींच लिया , ' चलो भी !! '  अंदर पहुँच कर बड़ी सी हवेली देख कजरी की अंखे चौंधिया गई । ' लागे है बहुत बड़े लोग हैं ' मन मे सोचा उसने । धीरे धीरे अंदर बढ़ती गई एक कमरे का किवाड़ थोड़ा खुला था और मालिक  का बेटा किसी नौकरानी को बार बार पकड़ कर घसीट रहा था । वह बेचारी बार बार हाथ छुड़ा कर भागती और अपना काम करने लगती । कजरी के कदम ठिठक गए । वह लाली से बोली - ' उ कउन है जो भीतर बैठे है । और उ हमरी सहेली है रामकली !!  ' लाली ने भीतर झाँका रामकली सफाई कर रही थी और छोटे मालिक उसको अपनी गंदी नियत से ताकने मे लगे थे । मन ही मन बुदबुदाई लाली - ' ले आज इसकी बारी ,  कहने को मुआ ऊंच जात  है , ससुरा जात  के नाम का कलंक !!!  ' और आगे बढ़ ली । 

अप्रकाशित और मौलिक 

अन्नपूर्णा बाजपेई 

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Comment by vandana on September 7, 2014 at 7:29am

अच्छी विषयवस्तु और बढ़िया कसावट ....बहुत बढ़िया आदरणीया 

कृपया ध्यान दे...

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