पिता जी की डायरी से..  
 दो आंख 
 
 दो अंखिया वाला अँधा ह ,दुनिया के रखे झूठ खबर.
 सत्य झूठ के समझ समझ,करी जाला जीवन मृत्यु सफ़र.
 जवन देखला सब झूठ रहल , सुनल गुनल सब झूठ भरल .
 दुनिया हौए सब झूठ झूठ,पर सत्य रहेला उन्हां छिपल.
 पढ़ल लिखल पोथी पुरान,सब झूठ भएल बरनन बखान.
 बिना सत्य के जनला से ,विद्वान बना पर अल्प ज्ञान.
 बिनु सत्य धरा पर अंधकार, लीला से कायम बा अधार.  
  जन्म मृत्यु भी बार बार ,भाव बंधन भी दिल को स्वीकार.
 हानि लाभ के चक्कर में ,फस गए सभी किसी टक्कर में.
 यश अपयश को ढूढ़न में  ,कोई  ज़हर   बसा कोई शक्कर में.
 यह सत्य नहीं एक रहल खेल,भ्रम में ही सबका रहा जेल.
 बूंद निकल गयी सागर से, तप से फिरसे होत मेल.
 सत मातु पिता सत परमेश्वर ,बालक के रके रोज़ खबर.
 जे सत से नेह लगावेला पा  जाला, पा जाला सुन्दर सहज डगर.
 तपला पर शुद्धिकरण होला.सोना के शुद्ध वरण होला.
 जे भी पावल जब त्याग कईल,भरी जात रहल ख़ाली झोला.
 झूठ के नयना दू  होला ,सत के अंखिया एक भीतर बा.
 जे खेल दिहल उ पायी गईल, जीवन भी उनकर इतर बा.
 
           -----अवधेश कुमार तिवारी
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