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प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?

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प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?
प्यार में अब चल रही यूँ कर्द क्यों है ?


यार को जो हैं समझते इक खिलौना
प्यार जाने हो गया अब नर्द क्यों है ?


है बिना दस्तक चला आता सदा जो
वो बना यूँ आज फिर हमदर्द क्यों है ?


छू रही है रूह मेरी आते जाते
यह तुम्हारी साँस इतनी सर्द क्यों है ?


अपनी यादों को समेटे जब गए हो

आज यादों की उठी फिर गर्द क्यों है ?


प्यार पर है जुल्म करता रोज ही जो
यह जमाना हो गया बेदर्द क्यों है ?


तुम समझती हो मुहब्बत जिसको सरिता
वो बना तेरे लिए सरदर्द क्यों है ?

कर्द ..छुरी 

नर्द .. चौसर 

...मौलिक एवं संशोधित ....

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Comment

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Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 16, 2013 at 5:25pm

सुन्दर ग़ज़ल... आदरणीया सरिता भाटिया जी... हार्दिक बधाई स्वीकारें....

(लफ्ज़ "कर्द" में अटका हुआ हूँ...)

सादर..

Comment by Sarita Bhatia on December 9, 2013 at 10:36am

शुक्रिया अरुण ,स्नेह बनाए रखें 

Comment by Sarita Bhatia on December 9, 2013 at 10:36am

राजेश दी हार्दिक आभार , मार्गदर्शन करती रहें 

Comment by Sarita Bhatia on December 9, 2013 at 10:35am

आदरणीय निलेश जी उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on December 9, 2013 at 10:34am

गुरुदेव हार्दिक आभार आपको गजल पसंद आई 

Comment by Sarita Bhatia on December 9, 2013 at 10:33am

आदरणीय उमेश जी आदरणीया परवीन जी शुक्रिया 

Comment by Sarita Bhatia on December 9, 2013 at 10:32am

आदरणीय श्याम नारायण जी ,तपन दूबे जी ,मीना पाठक जी हार्दिक आभार 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:13pm

आदरणीय सरिता जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने काफिया कठिन है इसका निर्वाह अच्छे से कर गए आप. दिल से बधाई स्वीकारें.

Comment by Parveen Malik on December 7, 2013 at 11:18am
बहुत सुन्दर गजल सरिता जी .. बधाई !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 7, 2013 at 9:49am

सुन्दर ग़ज़ल हुई है प्रिय सरिता जी ---इस शेर के भाव थोड़े उलझ रहे हैं 

है बिना दस्तक चला आता सदा जो 
वो बना यूँ आज फिर हमदर्द क्यों है ?

बाकी ग़ज़ल तारीफ़ की हक़दार है बहुत बहुत बधाई 

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