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मेरा मन झूम राधा हो : अरुन शर्मा 'अनन्त'

भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो,

मुरारी की सुनूँ मुरली,
मेरा मन झूम राधा हो,

लबालब प्रेम से हो जग,
गली घरद्वार वृंदा हो,

यही मैं चाहता हूँ रब,
मेरी चाहत चुनिन्दा हो,

ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,

खुले आकाश के नीचे,
सदा निर्भय परिन्दा हो,

बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....

मौलिक व अप्रकाशित ..

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on December 2, 2013 at 4:05pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by Meena Pathak on December 2, 2013 at 1:47pm

बहुत सुन्दर गज़ल | बधाई आप को आदरणीय अरुन जी | सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 1:15pm

आदरणीय बृजेश भाई जी आपका सदैव स्वागत है

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 1:15pm

आदरणीया गीतिका जी मतले की रूह तक पहुँचने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ग़ज़ल पसंद आई सुनकर सुखद लगा

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 1:13pm

आदरणीय अरुण भाई, मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार! बात स्पष्ट करने के लिए आपका आभार!

Comment by वेदिका on December 2, 2013 at 1:12pm

भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो, ,,,वाह बहुत खूब मतला हुआ है| परस्पर प्रेम आधा हो, एक दूसरे का,एक दूसरे के लिए प्रतिबद्ध होना, दोनों का आधा आधा प्रेम, मिलके एकत्व का निर्माण करते हैं| "प्रेम गली अति साँकरी, जा मे दो न समाय" , आपकी भाव क्षमता को नमन!

हार्दिक शुभकामनायें !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 1:00pm

आदरणीय बृजेश भाई जी हृदयतल से हार्दिक आभार आपका स्नेह यूँ ही बना रहे. आदरणीय बृजेश भाई जी मैंने काफिया केवल आ लिया हुआ.

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 12:55pm

वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल! वाह! आपको हार्दिक बधाई!

एक बात पूछनी थी आपसे कि क्या 'ध' और 'द' की तुकांतता मान्य है?

सादर!

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 12:51pm

आदरणीया क्यूंकि प्रेम कभी सम्पूर्ण नहीं होता आधा अधूरा ही होता है

Comment by Sarita Bhatia on December 2, 2013 at 12:03pm

मतला तो ठीक है 

पर यह आधा क्यों? यह समझ नहीं आया 

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