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मैं लेटा हूँ घास पर / सूखी भूरी घास 

जिसके होने का एहसास भर है

 

जमीन गरम है

लेकिन लेटा हूँ 

धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी

तपन की अनुभूति

 

उड़े जा रहे हैं

पंछी एक ओर 

शरीर के नीचे

रेंगती चींटियाँ 

पास ही खेलते कुछ बच्चे 

कुछ लोग भी

इधर-उधर छितरे, घूमते-बैठे

 

मैं निरपेक्ष

लेटा तकता आसमान

कि कभी टूटकर गिरेगा

और धरती का

रंग बदल जाएगा

                - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on October 25, 2013 at 10:36pm

आदरणीय सौरभ जी, आपका हार्दिक आभार!

सही दिशा में कार्य कर सकूं, ये प्रयास है और इसमें आपका मार्गदर्शन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है!

सादर!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 25, 2013 at 9:24pm

आ0 बृजेश भार्इ जी,  

-----------//मैं निरपेक्ष

लेटा तकता आसमान

कि कभी टूटकर गिरेगा

और धरती का

रंग बदल जाएगा//============सुन्दर रचना के लिए आपको तहेदिल से हार्दिक बधार्इ।  सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2013 at 8:33pm

भाई बृजेशजी, आपकी रचना में वर्तमान के प्रति निर्लिप्तता और उचाटपन जिस गहनता से निखर कर आये हैं कि आपकी रचना के नायक के परिस्थितिजन्य निठल्लेपन और उसकी उद्विग्नता को बिम्बात्मक स्वर सार्थक रूप से मिला हुआ लगा है. आपरूप कुछ होजाने का भाव बेहतर ढंग से सामने आया है.

ऐसी भावदशा को शाब्दिक करना अब तनिक दुरूह होता जा रहा है. कारण कि, अपनी अभिव्यक्तियों में हर दूसरा रचनाकार दशाब्दियों से इस थकन को शब्द-स्वर देता दीखता रहा है.
किन्तु, आपकी प्रस्तुत अभिव्यक्ति कई मायनों में अभिनव लगी.

आपकी गहन सोच को अब सार्थक दिशा मिल गयी है. सतत रहें.


हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ.

Comment by बृजेश नीरज on October 25, 2013 at 8:06pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 25, 2013 at 8:06pm

आदरणीय शिज्जू जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 25, 2013 at 8:05pm

आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार! आपको रचना अच्छी लगी, मेरा प्रयास सार्थक हुआ!

Comment by बृजेश नीरज on October 25, 2013 at 8:04pm

आदरणीय अरुण भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 25, 2013 at 7:38pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 25, 2013 at 7:15pm

आदरणीय सारथी जी आपका हार्दिक आभार! आपको रचना पसंद आई, मेरा प्रयास सफल हुआ!

Comment by बृजेश नीरज on October 25, 2013 at 7:14pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

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