For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरी कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान

जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान

बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे

जग माया का जाल, दर्प के दरपन टूटे

हुआ क्लेश का नाश, पीर सब हर ली मेरी

पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी !!

- बृजेश नीरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 862

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 24, 2013 at 9:36pm

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार! रचना को मिला आपका अनुमोदन वास्तव में महत्वपूर्ण है मेरे लिए!

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 6:33am

पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी............ वाह वाह आ0 बृजेश भाई जी.... बहुत सुंदर..... कान्हा से प्रेम को दर्शाती एक बेहद ज़ोरदार प्रस्तुती..... बधाई आपको...

Comment by बृजेश नीरज on October 20, 2013 at 8:53am

आदरणीया कुंती जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by coontee mukerji on October 20, 2013 at 1:38am

री कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान

जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान

बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे.......बहुत सुंदर बृजेश जी.हर विधा में आपकी लेखनी माहिर है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2013 at 11:14pm

आदरणीय बृजेश जी,

इस आगे-पीछे को छोड़ हम वाह-वाही एक्सप्रेस पर चढ़ने-उतरने के मायावी खेल से बचे ही रहें :))) तो ही तथ्यपरक चर्चा की सार्थकता है.

हम सभी समवेत सीखते चलें... और नित रचनाकर्म करते रहें , यही सद्कामना है.

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on October 19, 2013 at 10:32pm

आदरणीया प्राची जी, आपका बहुत आभार! फिर भी अभी खुद को आपसे पीछे ही मानता हूँ!

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 19, 2013 at 10:27pm

//आपने अपनी कुण्डलियाँ की जो पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत की हैं वो भावाभिव्यक्ति में बहुत उच्च कोटि की हैं! काश! मैं भी कभी इस विधा में ऐसा कुछ कह पाऊं!//

ये क्या कह रहे हैं आ० बृजेश जी.... वैसे ही भावों को , वैसी ही गहनता के साथ अनुभव करके ..आपने वैसा ही लिखा हैं यहाँ ..... तभी तो हमने अपनी पंक्तियाँ सांझा कीं :)))))))

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on October 19, 2013 at 10:22pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार! आपकी विस्तृत टिप्पणी से बहुत सबल मिला! आपने अपनी कुण्डलियाँ की जो पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत की हैं वो भावाभिव्यक्ति में बहुत उच्च कोटि की हैं! काश! मैं भी कभी इस विधा में ऐसा कुछ कह पाऊं!

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on October 19, 2013 at 10:19pm

आदरणीय सौरभ जी, आदरणीय बागी जी और आदरणीया राजेश कुमारी जी आप तीनों का बहुत बहुत आभर! आप लोगों की चर्चा से मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला! कुण्डलियाँ सीखने के प्रथम चरण में ही हूँ, आप लोगों का मार्गदर्शन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा!

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on October 19, 2013 at 10:17pm

आदरणीय संदीप भाई और नीरज जी आपका हार्दिक आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service