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चाँद हौले से मुस्का दिया - कविता

अंधकार गहरा चला अब  

सितारों से भर चला नभ  

चाँद हौले से मुस्का दिया

अप्रतिम अलौकिक सुंदरता ...................

 

सुंदरी की खुली अलकें सी

चाँदनी भी छिटकने लगी

कण कण दुग्ध मे नहाया सा

प्रफुल्लित हो चला मन

लगता था जो पराया सा ........................

 

तप्त धरा सी वो

पाई जिसने शीतलता  

नीरवता तोड़ता विहग

आवरण जो असत्य का ,

अंधकार वो अहम का

हौले हौले .......................

चेतना लौटी प्रबुद्धता आई

नैसर्गिक अविचलता लाई

प्रेम और विश्वास का

स्नेह और उल्लास का

सागर लेने लगा हिलोरें....................................

अप्रकाशित एवं मौलिक  

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on September 5, 2013 at 8:38pm

 बहुत  ही सुन्दर रचना  आदरणीया अन्नपूर्णा जी ///हार्दिक बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 5, 2013 at 8:38pm

आ0 अन्नपूर्णा जी,   सादर प्रणाम!   सुन्दर प्रस्तुति।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।   सादर,

Comment by annapurna bajpai on September 5, 2013 at 8:08pm
ji shukriya janab apka .
Comment by Ayub Khan "BismiL" on September 5, 2013 at 7:54pm

bahut Umdaaa TakhayyuL

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