For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अलार्म   की आवाज सुन कर अदिति की आँख खुल गयी | उसने मोबाइल उठा कर अलार्म बंद कर दिया और समय देखा सुबह के ५ बज गए थे  जल्दी से उठ कर काम में लग गई सफाई, नहाना, पूजा बेटे को स्कूल और पति को ऑफिस भेज कर एक लम्बी साँस ली | कमरे में नजर घुमा के देखा तो पूरा कमरा अस्त व्यस्त हो गया था, फिर से उसने आंचल को कमर में खोंसा और काम में जुट गई | काम समेटते समेटते दोपहर हो गयी और बेटे के स्कूल से आने का समय भी | वो दौड़ कर रसोई में जा गैस पर दाल गर्म होने के लिए रख देती है इतने में बेटा आ जाता है, आते ही बैग, मोज़े, शर्ट, पैंट जूते सब इधर-उधर फैंक कर बोला "मम्मी जल्दी से खाना दो बहुत भूख लगी है |" .."हाँ  बेटा बस एक मिनट, देती हूँ |" खाने के बाद बेटा टी वी देखने लगा और अदिति फिर से कमरा व्यवस्थित कर के बेटे का युनीफाम धोने चली गयी | शाम के चार बज चुके थे | " मम्मी चाय बना दो कोचिंग जाना है |" अपना हाथ पोछते हुए अदिति बोली "अभी बनाती हूँ बेटा"..उफ्फ्फ़ अभी तक उनका कपड़ा स्त्री नहीं किया मैंने |
रात का सारा काम ख़त्म कर के अदिति ने सुबह की तैयारी भी कर ली | बेटा सो गया, एक लम्बी साँस ले कर वो भी बिस्तर पर आ के धम्म से बैठ गयी और प्रणव (पति)से बोली "थक जाती हूँ सारा दिन काम कर के अब जा के फुर्सत मिली |" प्रणव ने घूरा और कहा " तुम्हारे पास मेरे लिए भी कभी समय होता है ? जब भी आती हो थकी हुई आती हो हम दोनों के जाने के बाद सारा दिन सोती हो और टी वी देखती हो,इस समय रोज का बहाना है तुम्हारा " बहुत थक गयी हूँ |"
अदिति ने उठ कर  लाईट ऑफ़ की और लेट गयी अँधेरे में उसकी आँखों से दो बूँद आँसू लुढ़क गए वो सोचने लगी कि पूरे दिन में उसके लिए कौन सा समय था और उसने खुद के लिए क्या किया |

मीना पाठक
मौलिक /अप्रकाशित

Views: 995

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 12:56pm

स्त्री घर को सहेजने और समेटने में अपना सारा समय लगा देती है लेकिन उसका श्रेय उसको कभी नहीं मिलता। उसके श्रम को कमतर ही आंका जाता है।
आपकी यह कथा बहुत ही सुन्दर है। स्त्री के जीवन के इस दुखद पहलू को आपने बहुत सुन्दरता से उकेरा है।
आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 9:48am

आ० बागी जी  सहमत हूँ आप से | हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक आभार


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2013 at 9:31am

दरअसल आपकी लघुकथा का विषय अत्यंत ही आम है, संभव है एक नहीं अनेक कथायें लिखी गयीं होंगी, इसलिए चिंता की बात नहीं है, थीम एक होते हुए भी दोनों रचनायें अलग दिखती हैं, इस लघुकथा को और भी कॉम्पैक्ट किया जा सकता था. इस लघुकथा पर बधाई स्वीकार करें आदरणीया मीना पाठक जी ।  

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 9:20am

मुझे बिलकुल जानकारी नहीं थी आदरणीय जुनेजा जी नहीं तो मैं  ये गलती कभी ना करती

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 8:35am

ओह !!... ये दोनों लघुकथा तो बिलकुल एक जैसी है | आदरणीय पियूष द्विवेदी जी, जो मैंने आप की 'जीम्मेदारी' पहले पढ़ ली होती तो अपना 'समय' ना लिखती | संयोग ही कहूंगी और क्या कह सकती हूँ | लघुकथा सराहने के लिए सादर आभार

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 8:26am

आ० वंदना जी ना जाने और कितना समय लग जाए इस समस्या का हल ढूंडने में ...

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 4, 2013 at 7:47am

सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई के साथ कहूंगा कि शायद ये संयोग मात्र है कि इससे मिलती-जुलती एक लघुकथा काफी पहले लिखा और ओबीओ पर पोस्ट किया था ! आप चाहें तो देख सकती हैं, आदरणीय मीना जी !

सादर

http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:284937

Comment by vandana on September 4, 2013 at 6:44am

इस समस्या का हल खोजना ही चाहिए ...

Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 12:10am

सही कहा आप ने प्रिय गीतिका जी .. उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार

Comment by वेदिका on September 3, 2013 at 11:38pm

ये  समस्या कोई नयी समस्या नही है| काफी समय से चली आ रही है| लेकिन कभी सोल्व करने की कोशिश नही की जाती| क्यूकी दो फीसदी लोगो के अलावा कोई इसे समस्या मानने को तैयार ही नही होता|  क्यूकी भारतीय समाज मे हाउस वाइफ़ की कोई दर नही मानी जाती घर की स्वामिनी की मनोदशा का अच्छा खाका उतारा आपने|

बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service